वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद: सरकार क्या चाहती है और लोग क्यों कर रहे हैं विरोध?
उत्तर प्रदेश के वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को लेकर इन दिनों एक बड़ा विवाद सामने आ रहा है। राज्य सरकार ने मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक विशाल कॉरिडोर यानी गलियारा बनाने की योजना बनाई है। यह योजना लगभग 5 एकड़ भूमि पर बनेगी, जिसमें प्रवेश और निकास के अलग-अलग रास्ते, शौचालय, क्लोक रूम, पार्किंग सुविधा, प्रवचन हॉल और अन्य जरूरी व्यवस्थाएं शामिल होंगी। सरकार का मानना है कि इस योजना से मंदिर में भीड़ प्रबंधन आसान होगा, श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
क्या है बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर योजना?
उत्तर प्रदेश सरकार की योजना के अनुसार:
- लगभग 5 एकड़ भूमि पर कॉरिडोर बनाया जाएगा।
- इसमें प्रवेश और निकास के लिए अलग मार्ग,
- शौचालय, पार्किंग, cloakroom,
- श्रद्धालुओं के लिए प्रवचन हॉल,
- और सुरक्षा के लिए आधुनिक इंतजाम किए जाएंगे।
सरकार का उद्देश्य है कि भारी भीड़ के कारण होने वाली अव्यवस्था को रोका जा सके और मंदिर दर्शन को सुगम बनाया जा सके।
सरकार क्या कहती है ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके प्रशासन का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर में हर साल लगभग 1.25 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं और त्योहारों के समय एक ही दिन में 2 से 3 लाख लोग एकत्र हो जाते हैं, जिससे भारी भीड़ और भगदड़ जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं। इसलिए यह कॉरिडोर जरूरी है ताकि सुरक्षा और व्यवस्था दोनों का ध्यान रखा जा सके। सरकार यह भी दावा कर रही है कि यह प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह भव्य होगा,
जिसमें धार्मिक भावनाओं और परंपराओं का पूरा ख्याल रखा जाएगा।
गोस्वामी समाज का विरोध
लेकिन दूसरी तरफ इस परियोजना का स्थानीय स्तर पर जबरदस्त विरोध हो रहा है। सबसे मुखर विरोध गोस्वामी समाज कर रहा है, जो पारंपरिक रूप से मंदिर की सेवा और व्यवस्था से जुड़ा रहा है। उनका कहना है कि इस कॉरिडोर के लिए जिन 5 एकड़ जमीन की बात हो रही है, उसमें कई पुरानी हवेलियां, धर्मशालाएं और गौरक्षणी हैं, जिन्हें तोड़ा जाएगा। वे मानते हैं कि यह परियोजना मंदिर की ऐतिहासिक विरासत और पारंपरिक स्वरूप को नुकसान पहुंचाएगी। इसके अलावा गोस्वामी समाज को यह भी आशंका है कि सरकार इस बहाने मंदिर की संपत्ति और अधिकार को ट्रस्ट के ज़रिए अपने नियंत्रण में लेना चाहती है, जिससे उनका पारंपरिक दखल खत्म हो जाएगा।
स्थानीय निवासियों की नाराज़गी
स्थानीय व्यापारी और निवासियों की भी नाराज़गी कम नहीं है। उन्हें डर है कि कॉरिडोर के निर्माण के दौरान उनके घर और दुकानें उजड़ सकती हैं और उन्हें उचित मुआवज़ा या पुनर्वास नहीं मिलेगा। लोगों का मानना है कि पर्यटन बढ़ाने के नाम पर धार्मिक पहचान और स्थानीय संस्कृति से छेड़छाड़ हो रही है। श्रद्धालु भी दो गुटों में बंटे नजर आते हैं—कुछ इसके पक्ष में हैं, तो कुछ मानते हैं कि बांके बिहारी जी की सेवा और दर्शन की पारंपरिक व्यवस्था को किसी आधुनिक ढांचे से बाधित करना गलत होगा।
हालिया घटनाएं और बहसें
हाल ही में, जब प्रशासनिक अधिकारी और गोस्वामी समाज के प्रतिनिधि बैठक के लिए पहुंचे, तो वहां बहस, नाराज़गी और हंगामे जैसी स्थिति बन गई। कुछ श्रद्धालुओं ने विरोध कर रहे लोगों को खदेड़ दिया और सरकार के पक्ष में नारे भी लगाए।
इस पूरे मामले ने अब राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही रंग ले लिए हैं।
क्या है समाधान बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद का ?
सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया गया है कि किसी को जबरन उजाड़ा नहीं जाएगा, और सभी पक्षों से बातचीत कर समाधान निकाला जाएगा। साथ ही कॉरिडोर की डिज़ाइन में ऐसा बदलाव भी किया जा सकता है जिससे मंदिर की धार्मिक गरिमा और पारंपरिक स्वरूप को बनाए रखा जा सके।
इस पूरे विवाद का सार यही है कि विकास और विरासत के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। बांके बिहारी मंदिर केवल एक तीर्थ स्थान नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। ऐसे में अगर सरकार श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कुछ करना चाहती है, तो उसे स्थानीय भावनाओं, पारंपरिक व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक विरासत का पूरा सम्मान करते हुए आगे बढ़ना होगा।
तभी यह विकास टिकाऊ और सभी के लिए स्वीकार्य होगा।
FAQs-वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद
1. बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर क्या है?
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर एक सरकारी योजना है जिसके तहत वृंदावन के इस ऐतिहासिक मंदिर के आसपास 5 एकड़ क्षेत्र में एक सुव्यवस्थित गलियारा (कॉरिडोर) बनाया जाएगा।
इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं, सुरक्षित प्रवेश-निकास और भीड़ प्रबंधन सुनिश्चित करना है।
2. सरकार यह कॉरिडोर क्यों बनाना चाहती है?
सरकार का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं और त्योहारों पर भीड़ अत्यधिक बढ़ जाती है, जिससे भगदड़ जैसी स्थितियां बनती हैं।
कॉरिडोर से दर्शन प्रक्रिया आसान होगी, श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलेंगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
3. गोस्वामी समाज इस कॉरिडोर का विरोध क्यों कर रहा है?
गोस्वामी समाज को आशंका है कि कॉरिडोर निर्माण के दौरान मंदिर की पारंपरिक व्यवस्था और ऐतिहासिक विरासत को नुकसान पहुंचेगा।
वे मानते हैं कि सरकार मंदिर पर नियंत्रण पाने के लिए इस योजना को लागू करना चाहती है
और इससे उनका पारंपरिक अधिकार समाप्त हो जाएगा।
4. क्या स्थानीय लोग भी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं?
हां, कई स्थानीय निवासी और व्यापारी इस योजना का विरोध कर रहे हैं। उन्हें डर है कि उनकी संपत्तियां (घर-दुकानें) उजाड़ दी जाएंगी और मुआवज़ा या पुनर्वास को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
उन्हें लगता है कि यह विकास उनके जीवन और पहचान को प्रभावित करेगा।
5. क्या सभी श्रद्धालु इस कॉरिडोर के खिलाफ हैं?
नहीं, सभी श्रद्धालु इसके खिलाफ नहीं हैं। कुछ भक्त इस योजना का समर्थन करते हैं क्योंकि इससे भीड़ नियंत्रण और सुविधा बेहतर हो सकती है,
जबकि कुछ भक्त इसे मंदिर की परंपरा में सरकारी हस्तक्षेप मानकर विरोध कर रहे हैं।
6. क्या सरकार ने इस मामले में समाधान का कोई रास्ता सुझाया है?
सरकार ने कहा है कि किसी को जबरदस्ती उजाड़ा नहीं जाएगा और सभी पक्षों से बातचीत के ज़रिए समाधान निकाला जाएगा।
कॉरिडोर डिज़ाइन में बदलाव कर परंपराओं को बनाए रखने का भी भरोसा दिया गया है।
7. क्या यह योजना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह है?
हां, सरकार का कहना है कि यह योजना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर बनाई जा रही है, जिसमें श्रद्धालुओं को आधुनिक सुविधाएं दी जाएंगी
लेकिन धार्मिक गरिमा और संस्कृति का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
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