Ambubachi Mela, जिसे “पूर्व का महाकुंभ” भी कहा जाता है, भारत के सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह पवित्र मेला हर साल जून महीने में असम के गुवाहाटी शहर में स्थित कामाख्या मंदिर में आयोजित होता है। यह त्योहार देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म चक्र (Annual Menstruation Cycle) को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है और यह स्त्री शक्ति और पृथ्वी की उर्वरता का भव्य उत्सव है।
Ambubachi Mela 2025 कब है?
अम्बुबाची मेला 2025 का आयोजन 22 जून से 26 जून 2025 तक किया जाएगा।
22 जून से 25 जून तक: मंदिर का गर्भगृह (Sanctum Sanctorum) बंद रहेगा। यह समय देवी के रजस्वला (menstruation) होने का प्रतीक है।
25 जून को: मंदिर फिर से खोल दिए जाएंगे, जब विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाएंगे
26 जून को: मेला समाप्त होगा
Ambubachi का अर्थ क्या है?
“अम्बुबाची” दो शब्दों से मिलकर बना है – “अम्बु” (जल) और “बाची” (बोलना/प्रकट होना)। यह संकेत करता है कि इस समय पृथ्वी स्वयं को जल के माध्यम से शुद्ध करती है और उर्वरता के लिए तैयार होती है। यह एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है।
अम्बुबाची मेला के पीछे की पौराणिक कथा
यह मेला उस पौराणिक घटना से जुड़ा है जब भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा शिव का अपमान किए जाने पर यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया था। उनके शरीर के टुकड़े जब पृथ्वी पर गिरे, तब उनकी योनि (reproductive organ) नीलाचल पर्वत पर गिर गई। उसी स्थान पर कामाख्या मंदिर की स्थापना हुई।
इस स्थान को शक्ति पीठों में से एक सबसे शक्तिशाली पीठ माना जाता है। मान्यता है कि देवी कामाख्या साल में एक बार रजस्वला होती हैं, और उसी समय मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
त्योहार की विशेषताएं
तीर्थयात्रियों की भारी भीड़: देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, साधु, योगी और तांत्रिक इस उत्सव में भाग लेने आते हैं।
तांत्रिक परंपराएं: कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है और अम्बुबाची मेला के दौरान विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं।
तीन दिन का मौन और विश्राम: जैसे मासिक धर्म के दौरान एक स्त्री विश्राम करती है, वैसे ही इस दौरान पृथ्वी और देवी दोनों को “आराम” दिया जाता है। इस समय कोई खेती, पूजा या विवाह जैसे शुभ कार्य नहीं होते।
मंदिर का पुनः उद्घाटन: चौथे दिन मंदिर के द्वार खुलते हैं, और भक्तों को “रजस्वला जल” और “लाल वस्त्र” (जो देवी के मासिक धर्म को दर्शाते हैं) प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं।
आध्यात्मिक महत्व
Ambubachi केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, यह दिव्य स्त्री ऊर्जा (Divine Feminine Energy) का सम्मान है। यह महिलाओं के मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक चक्रों को पवित्र मानने और उन्हें शर्म की बजाय श्रद्धा का स्थान देने की परंपरा है।
यह मेला भारतीय समाज में स्त्री के शरीर और प्रकृति को सम्मानित करने की एक पुरानी परंपरा का प्रमाण है, जो आधुनिक वैज्ञानिक सोच और पर्यावरण चेतना के भी अनुकूल है।
यात्रा और अनुभव
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किमी दूर है।
मेला के दौरान असम सरकार विशेष ट्रेनें, मेडिकल कैंप्स और मुफ्त भोजन की व्यवस्था करती है।
साधु-संतों के अलग-अलग अड्डे होते हैं जहां वे तांत्रिक साधना और प्रवचन करते हैं।
विदेशी पर्यटक और शोधकर्ता इस मेले को भारतीय संस्कृति की गहराई को समझने के लिए एक अद्भुत अवसर मानते हैं।
पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ाव
Ambubachi Mela यह भी सिखाता है कि प्रकृति का सम्मान करना कितना आवश्यक है। इन तीन दिनों के दौरान कोई बुआई (sowing) या हल चलाना नहीं होता क्योंकि यह माना जाता है कि धरती माता भी इस समय विश्राम कर रही हैं।
क्यों जाएं Ambubachi Mela 2025?
Ambubachi Mela सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह प्रकृति, स्त्री शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय संगम है। यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक समृद्धि का जीवंत उदाहरण है।
अगर आप 2025 में कोई ऐसा अनुभव चाहते हैं जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और रहस्यमय हो, तो अम्बुबाची मेला आपके लिए एकदम सही है।
Frequently Asked Questions (FAQs) – अम्बुबाची मेला कामाख्या देवी मंदिर
1. अम्बुबाची मेला क्या है और इसका धार्मिक महत्व क्या है?
अम्बुबाची मेला कामाख्या देवी मंदिर, गुवाहाटी (असम) में मनाया जाने वाला एक अद्वितीय और अत्यंत पवित्र पर्व है, जो देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म (menstruation) को सम्मान देने के लिए आयोजित किया जाता है। यह पर्व स्त्री ऊर्जा, पृथ्वी की उर्वरता, और सृजन शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय देवी स्वयं “रजस्वला” होती हैं, और धरती माँ भी इसी अवधि में विश्राम करती हैं। इसलिए न तो खेतों में बुआई होती है और न ही किसी प्रकार का शुभ कार्य।
इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य है — प्राकृतिक चक्रों और स्त्रीत्व के महत्व को सम्मान देना। यह पर्व यह दर्शाता है कि मासिक धर्म कोई वर्जित विषय नहीं, बल्कि दैवीय चक्र का हिस्सा है, जिसे श्रद्धा से देखा जाना चाहिए।
2. अम्बुबाची मेला 2025 में कब मनाया जाएगा?
अम्बुबाची मेला 2025 में 22 जून से 26 जून तक मनाया जाएगा।
22 जून से 25 जून तक कामाख्या मंदिर का गर्भगृह बंद रहेगा, क्योंकि यही समय देवी के मासिक धर्म का प्रतीक है।
25 जून को मंदिर फिर से खुलेगा, जब विशेष शुद्धिकरण अनुष्ठानों के साथ ‘नवान्न’ या ‘प्रसाद’ वितरित किया जाता है।
26 जून को मेले का समापन होता है।
असमिया पंचांग के अनुसार यह पर्व आषाढ़ महीने में मनाया जाता है
और यह मानसून की शुरुआत का प्रतीक भी होता है, जिससे भूमि उपजाऊ होती है।
3. अम्बुबाची मेला की पौराणिक कहानी क्या है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था,
तब भगवान शिव उनका मृत शरीर लेकर आकाश में घूमते रहे।
इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया।
तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो पृथ्वी पर गिर गए।
इनमें से देवी सती का योनि-अंग नीलाचल पर्वत (गुवाहाटी) पर गिरा, और यहीं कामाख्या देवी का शक्तिपीठ स्थापित हुआ।
इसी स्थान को ‘योनि पीठ’ भी कहा जाता है। हर वर्ष जब देवी रजस्वला होती हैं, तो मंदिर बंद कर दिया जाता है
और यह मेला उस दैवीय शक्ति और स्त्रीत्व की पूजा का प्रतीक बन जाता है।
4. अम्बुबाची मेला के दौरान कौन-कौन से अनुष्ठान और परंपराएं निभाई जाती हैं?
अम्बुबाची मेला के दौरान कई आध्यात्मिक और तांत्रिक परंपराएं निभाई जाती हैं:
मंदिर बंद (22-25 जून): देवी के मासिक धर्म के प्रतीकस्वरूप मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है।
तीन दिन का मौन और विश्राम: इस अवधि में न कोई पूजा होती है, न कोई विवाह या शुभ कार्य।
तीर्थयात्रा और साधना: हजारों साधु, तांत्रिक और श्रद्धालु गुवाहाटी आते हैं और मंदिर के बाहर साधना करते हैं।
‘नवान्न’ वितरण (25 जून): मंदिर के खुलने के बाद पवित्र वस्त्र, लाल जल और प्रसाद वितरित होता है।
कृषि विराम: खेतों में कोई खेती या बुआई नहीं की जाती — यह पृथ्वी के ‘विश्राम’ का प्रतीक है।
यह सब परंपराएं दर्शाती हैं कि किस तरह से प्रकृति के चक्र और स्त्री शक्ति को संतुलित रूप से पूजा जाता है।
5. क्या अम्बुबाची मेला में महिलाएं भी भाग ले सकती हैं?
जी हां, अम्बुबाची मेला स्त्रीत्व और मासिक धर्म की गरिमा को सम्मान देने वाला पर्व है, और महिलाएं इसकी केंद्रबिंदु हैं।
यह पर्व किसी भी तरह से महिलाओं के प्रवेश या भागीदारी को वर्जित नहीं करता।
वास्तव में, यह समाज में मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ता है
और स्त्री शरीर के प्राकृतिक चक्र को दैवीय और शक्तिशाली रूप में प्रस्तुत करता है।
6. अम्बुबाची शब्द का अर्थ क्या है और यह नाम क्यों पड़ा?
अम्बुबाची शब्द संस्कृत मूल के हैं —
अम्बु का अर्थ होता है जल (Water)
बाची का अर्थ होता है उद्गम या प्रवाह (flowing)
यह नाम उस समय को दर्शाता है जब बारिश की शुरुआत होती है और धरती जल ग्रहण कर के उर्वर हो जाती है।
यह मासिक धर्म के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है,
जो सृजन और प्रजनन की शक्ति का संकेत है।
7. क्या अम्बुबाची मेला केवल धार्मिक महत्व रखता है या इसका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है?
अम्बुबाची मेला न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है:
सांस्कृतिक दृष्टि से: यह असम की एक प्रमुख पहचान है, जहाँ देश-विदेश से साधु-संत, पर्यटक, तांत्रिक और श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सामाजिक रूप से: यह उत्सव मासिक धर्म जैसे विषयों को सामान्य बनाने में सहायक है और महिलाओं की दैवीय ऊर्जा को सम्मानित करता है।
आर्थिक रूप से: यह उत्सव स्थानीय पर्यटन और व्यापार को भी बढ़ावा देता है।
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