भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक महान पुरुषों और महिलाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। लेकिन जब बात महिलाओं की होती है, तो उनमें से एक नाम अत्यंत प्रेरणादायक है — अरुणा आसफ़ अली। वे सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं थीं, बल्कि साहस, नेतृत्व और नारी शक्ति की सशक्त प्रतीक भी थीं। विशेष रूप से 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही, जहां उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका।
प्रारंभिक जीवन
पूरा नाम: अरुणा गांगुली (विवाह के बाद अरुणा आसफ़ अली), जन्म: 16 जुलाई 1909, कालका (अब हरियाणा में), पिता: उपेन्द्रनाथ गांगुली (बंगाली ब्राह्मण परिवार से), शिक्षा: नैनीताल और लाहौर के प्रसिद्ध विद्यालयों में पढ़ाई।
अरुणा जी का झुकाव बचपन से ही सामाजिक कार्यों और शिक्षा की ओर था। उन्होंने एक शिक्षिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन उनका मन स्वतंत्रता संग्राम की ओर खिंचता चला गया।
विवाह और सामाजिक संघर्ष
अरुणा जी ने समाज के रीति-रिवाजों को चुनौती देते हुए 1930 में मुस्लिम समाज सुधारक और कांग्रेस नेता आसफ़ अली से विवाह किया। उस समय अंतरधार्मिक विवाह को समाज में स्वीकार नहीं किया जाता था, लेकिन उन्होंने प्रेम और विचारधारा के आधार पर निर्णय लिया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन –उन्होंने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया और कई बार जेल भी गईं। जेल में उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया, लेकिन वे कभी नहीं टूटीं।
1942 का भारत छोड़ो आंदोलन — ऐतिहासिक भूमिका
जब महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की, उसी रात सारे प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
लेकिन 9 अगस्त 1942 को अरुणा आसफ़ अली ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय तिरंगा फहराया और भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।
यह एक अत्यंत साहसिक कार्य था, क्योंकि पुलिस चारों ओर से मैदान को घेर चुकी थी और दमनकारी कार्रवाई की आशंका थी।
यह कदम उन्हें आंदोलन की ‘हीरोइन ऑफ 1942’ बना गया।
अंडरग्राउंड संघर्ष- गिरफ्तारी के आदेश के बाद वे भूमिगत हो गईं और गुप्त रूप से आंदोलन का संचालन करती रहीं।
उन्होंने क्रांतिकारियों को एकजुट रखा और ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी।
स्वतंत्रता के बाद का योगदान
स्वतंत्रता प्राप्ति के बा द अरुणा जी ने सक्रिय राजनीति से दूरी बनाई, लेकिन वे सामाजिक न्याय, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के कार्यों में लगी रहीं।उन्होंने ‘इन्कलाब’ और ‘Patriot’ जैसे प्रगतिशील समाचार पत्रों का संपादन किया।
सम्मान और पुरस्कार
1992: पद्म विभूषण
1997: भारत रत्न (मरणोपरांत) वे
दिल्ली की पहली महिला मेयर भी बनीं (1958)।
निधन
दिनांक: 29 जुलाई 1996 स्थान: नई दिल्ली
अरुणा जी का जीवन न केवल स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बल्कि नारी सशक्तिकरण के लिए भी एक प्रेरणा बन गया।
अरुणा आसफ़ अली भारत की उन चंद वीरांगनाओं में से हैं, जिन्होंने न डर का साथ दिया, न झुकीं, और न ही समझौता किया। उनका संपूर्ण जीवन त्याग, साहस और संघर्ष की मिसाल है। भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका इतिहास के पन्नों में अमर हो चुकी है।
उनका नाम आज भी महिलाओं को यह संदेश देता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी शक्ति आपको रोक नहीं सकती।
FAQs – अरुणा आसफ़ अली से जुड़े सामान्य प्रश्न
प्र.1: अरुणा आसफ़ अली को भारत छोड़ो आंदोलन में क्या भूमिका निभाई?
उन्होंने 9 अगस्त 1942 को गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर आंदोलन की अगुवाई की,
जब सभी नेता जेल में थे।
प्र.2: अरुणा जी का विवाह किससे हुआ था?
उनका विवाह मुस्लिम नेता आसफ़ अली से हुआ था।
प्र.3: क्या उन्हें भारत रत्न मिला है?
हां, उन्हें 1997 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
प्र.4: अरुणा आसफ़ अली की मृत्यु कब हुई?
29 जुलाई 1996 को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ।
प्र.5: क्या वे दिल्ली की मेयर भी बनी थीं?
जी हां, 1958 में वे दिल्ली की पहली महिला मेयर बनी थीं।
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