भगत सिंह(Bhagat Singh)का ऐतिहासिक लेख: “Why I am an Atheist” – मैं नास्तिक क्यों हूँ?
“देशभक्ति का मतलब सिर्फ़ बंदूकें और बम नहीं होता, विचारों की लड़ाई उससे भी बड़ी होती है।” – भगत सिंह
भगत सिंह ने अपनी फाँसी से पहले अंग्रेज़ों को एक किताब भेजी थी – ‘Why I am an Atheist’.
भारत की आज़ादी की लड़ाई में भगत सिंह का नाम साहस, क्रांति और बलिदान का प्रतीक है।
लेकिन उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू था जो उन्हें बाकी क्रांतिकारियों से अलग करता है – उनकी गहन विचारधारा और तार्किक सोच।
क्या था “Why I am an Atheist”?
जब भगत सिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई और वो लाहौर जेल में बंद थे, तब उन्होंने एक लेख लिखा – “Why I am an Atheist” यानी “मैं नास्तिक क्यों हूँ?”
यह लेख 6 अक्टूबर 1930 को लिखा गया था, और यह आज भी उनके विचारों की गहराई को दर्शाता है।
भगत सिंह ने ये लेख क्यों लिखा?
उस दौर में कुछ लोगों ने यह सवाल उठाया था कि भगत सिंह भगवान को क्यों नहीं मानते?
कुछ ने यहाँ तक कह दिया कि भगवान में विश्वास न होने की वजह से उनके अंदर बलिदान की भावना नहीं हो सकती।
इस पर भगत सिंह ने तर्क और दर्शन के आधार पर जवाब दिया – कि सच्चा बलिदान बिना किसी स्वर्ग या पुनर्जन्म की आशा के किया जाता है। वो मानते थे कि इंसान को अपने विवेक और तर्क के आधार पर निर्णय लेना चाहिए, न कि अंधविश्वास के आधार पर।
भगत सिंह(Bhagat Singh) ने “Why I am an Atheist” में क्या-क्या लिखा है?
1. नास्तिक होने का कारण
भगत सिंह ने साफ-साफ बताया कि वो ईश्वर को नहीं मानते, क्योंकि उन्हें ऐसा कोई तर्क नहीं मिला जो ईश्वर के अस्तित्व को साबित कर सके।
उन्होंने लिखा कि ईश्वर का विचार मनुष्य की कमज़ोरी और डर की उपज है।
“यदि ईश्वर नहीं है, तो उसका डर दिखाकर लोगों को डराकर क्यों रखा जाए?”
2. धार्मिक अंधविश्वास की आलोचना
उन्होंने धार्मिक अंधविश्वासों, कर्म-कांडों और पाखंडों की खुलकर आलोचना की।
उनका मानना था कि ये सब इंसान को सोचने-समझने से रोकते हैं और क्रांति की राह में सबसे बड़ी रुकावट हैं।
3. बलिदान के पीछे कोई स्वर्ग की इच्छा नहीं
भगत सिंह ने कहा कि वो किसी स्वर्ग या पुनर्जन्म के लिए नहीं, बल्कि देश और समाज की भलाई के लिए अपना बलिदान दे रहे हैं।
“मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद कुछ नहीं होगा, फिर भी मैं अपनी जान दे रहा हूँ – यही असली बलिदान है।”
4. तर्क और वैज्ञानिक सोच का समर्थन
वो कहते हैं कि इंसान को हर चीज़ को तर्क, कारण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
उन्होंने अंधभक्ति और बिना सोचे-समझे विश्वास करने वालों की आलोचना की।
5. क्रांति का असली मतलब
भगत सिंह के अनुसार क्रांति सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सोच और व्यवस्था का परिवर्तन है।
और जब तक लोग तर्क के बजाय अंधविश्वास में जीते रहेंगे, तब तक असली आज़ादी अधूरी रहेगी।
क्या यह आज भी ज़रूरी है?
हाँ! बहुत ज़रूरी है।
जब आज भी लोग धर्म के नाम पर बँटे हैं, जब अंधविश्वास राजनीति से लेकर आम जीवन तक फैला है, तब भगत सिंह का यह लेख हमें याद दिलाता है कि सोचना, सवाल करना और समझदारी से जीना भी एक तरह की क्रांति है।
भगत सिंह(Bhagat Singh): “मैं नास्तिक हूँ, लेकिन देशभक्त भी हूँ”
“मैं नास्तिक हूँ, क्योंकि मैं सोचता हूँ। मैं ईश्वर को नहीं मानता, क्योंकि मैं बिना प्रमाण किसी बात को स्वीकार नहीं करता।”
भगत सिंह ने लिखा कि वो धर्म या ईश्वर में विश्वास नहीं करते,
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उनके अंदर देशभक्ति या मानवता की भावना कम है।
उन्होंने कहा –
“मैं नास्तिक हूँ, और मुझे गर्व है कि मैंने अपने सोचने की स्वतंत्रता को बचाए रखा है।”
उनका यह लेख दिखाता है कि क्रांति सिर्फ बंदूकों और धमाकों से नहीं होती, विचारों की ताकत भी उतनी ही ज़रूरी है।
यह लेख क्यों है आज भी प्रासंगिक?
आज जब धार्मिक पहचान को राजनीति और समाज में बड़ी भूमिका दी जा रही है,
तब भगत सिंह का यह लेख हमें सोचने, तर्क करने और विवेक से निर्णय लेने की प्रेरणा देता है।
“Why I am an Atheist” सिर्फ़ एक लेख नहीं, बल्कि सोच की क्रांति है।
भगत सिंह (Bhagat Singh)को अक्सर सिर्फ एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में देखा जाता है,
लेकिन उनका बौद्धिक पक्ष भी उतना ही प्रेरणादायक है।
“Why I am an Atheist” हमें सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति और बलिदान का रास्ता तर्क, विचार और मानवीय मूल्यों से होकर जाता है।
(FAQs) about Shaheed Bhagat Singh – शहीद भगत सिंह से जुड़े सवाल
Bhagat Singh कौन थे और उन्हें शहीद भगत सिंह क्यों कहा जाता है?
भगत सिंह भारत के सबसे युवा और क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उन्होंने अपने जीवन को देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दिया। मात्र 23 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी दे दी। उनकी क्रांतिकारी सोच और साहस के लिए उन्हें ‘शहीद-ए-आज़म’ की उपाधि दी गई।
भगत सिंह का जन्म कब और कहां हुआ था?
Bhagat Singh का जन्म 28 सितंबर 1907 को बंगा गांव, पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनका परिवार पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था, जिसने उनके विचारों पर गहरा प्रभाव डाला।
भगत सिंह की शिक्षा कहां हुई थी?
भगत सिंह ने लाहौर के डीएवी स्कूल और फिर नेशनल कॉलेज (अब डीएवी कॉलेज, लाहौर) में पढ़ाई की। यहीं पर उन्होंने क्रांतिकारी विचारों की गहराई से पढ़ाई की और कार्ल मार्क्स, लेनिन, टॉलस्टॉय जैसे विचारकों के लेखों का गहन अध्ययन किया।
Bhagat Singh ने सांडर्स की हत्या क्यों की थी?
लाला लाजपत राय की अंग्रेजों द्वारा की गई निर्मम लाठीचार्ज से हुई मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आज़ाद ने सांडर्स की हत्या 1928 में कर दी। उन्होंने लाजपत राय की मौत को ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई हत्या माना।
भगत सिंह ने संसद में बम क्यों फेंका था?
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में “बहरों को सुनाने के लिए बम फेंका”, ताकि ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की मांगें सुनाई दें। उन्होंने जानबूझकर बम को बिना किसी को नुकसान पहुंचाए फेंका और फिर खुद गिरफ्तार भी हो गए।
भगत सिंह को फांसी कब और क्यों दी गई?
Bhagat Singh, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। उन्हें ब्रिटिश अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या और बम धमाके में शामिल होने के आरोप में दोषी पाया गया। इस दिन को आज भी ‘Shaheed Diwas’ यानी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Bhagat Singh के प्रमुख विचार क्या थे?
- “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा भगत सिंह ने क्रांति के प्रतीक के रूप में लोकप्रिय किया।
- वे नास्तिक थे और उन्होंने “मैं नास्तिक क्यों हूँ” नामक प्रसिद्ध लेख लिखा।
- उन्होंने माना कि स्वतंत्रता केवल अंग्रेजों से मुक्ति नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी होनी चाहिए।
भगत सिंह की कौन-कौन सी किताबें या लेख प्रसिद्ध हैं?
- “मैं नास्तिक क्यों हूँ”
- “क्रांति क्या है?”
- “समाजवाद और भारत”
- “जेल नोटबुक” – उनकी जेल डायरी, जो उनके विचारों का प्रतिबिंब है।
भगत सिंह की विरासत आज भी कैसे ज़िंदा है?
Bhagat Singhआज भी भारतीय युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। भारत में स्कूलों, कॉलेजों और सड़कों के नाम उनके नाम पर हैं। उनके विचार आज भी सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा देते हैं। उनकी तस्वीरें और नारे अब भी हर आंदोलन और जन आंदोलन का हिस्सा होती हैं।
भगत सिंह पर कौन-कौन सी फिल्में बनी हैं?
The Legend of Bhagat Singh (2002) – अजय देवगन
Shaheed (1965) – मनोज कुमार
Shaheed-E-Azam (2002) – सोनू सूद
23rd March 1931: Shaheed (2002) – बॉबी देओल
इन फिल्मों ने भगत सिंह के जीवन और बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
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