भगत सिंह का आख़िरी ख़त-शहादत से पहले की अंतिम पुकार
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भगत सिंह का नाम वीरता, बलिदान और क्रांतिकारी चेतना का प्रतीक बन चुका है। मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूमा और अपनी शहादत से भारत के युवाओं को क्रांति की प्रेरणा दी। लेकिन उनकी शहादत से एक दिन पहले, 22 मार्च 1931 को उन्होंने अपने साथियों को एक ख़त लिखा था, जिसे आज भी उनके सबसे प्रेरणादायक दस्तावेजों में गिना जाता है।
शहादत से पहले साथियों को अंतिम पत्र
दिनांक-22 मार्च, 1931
लेखक- भगत सिंह
साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ—कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता।मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है, और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है—इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया, तो वे जाहिर हो जाएँगी, और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा, या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से, हँसते‑हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में, हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों से भगत सिंह बनने की आरजू करना चाहेंगी; और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देने वालों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि उस क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के लिए नामुमकिन हो जाएगा।
हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया।
मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए।
आपका साथी,
भगत सिंह
आख़िरी ख़त – जब शब्द हथियार बन गए
भगत सिंह का यह अंतिम पत्र उनकी विचारधारा, स्पष्ट सोच और बलिदानी भावना का जीवंत प्रमाण है। उन्होंने लिखा, “स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ—कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता।” यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि भगत सिंह के लिए स्वतंत्रता केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं थी, बल्कि आत्मसम्मान और विचारों की स्वतंत्रता भी उतनी ही ज़रूरी थी।
वे यह भी मानते थे कि यदि वे ज़िंदा रहते तो शायद लोगों को उनकी कमजोरियाँ भी दिखाई देतीं और उनके प्रतीकात्मक प्रभाव पर असर पड़ता। उन्होंने लिखा कि अगर वे हँसते-हँसते फाँसी चढ़ते हैं, तो देश की माताएँ अपने बच्चों से भगत सिंह बनने की कामना करेंगी, और इससे आज़ादी की लड़ाई और तेज़ हो जाएगी।
फाँसी नहीं, तोप से उड़ाए जाने की माँग
इस ख़त के अलावा, भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार से यह भी अनुरोध किया था कि उन्हें अपराधी की तरह फाँसी पर न लटकाया जाए, बल्कि एक क्रांतिकारी योद्धा की तरह तोप से उड़ाया जाए। वे खुद को युद्धबंदी मानते थे, जिन्होंने अन्याय के विरुद्ध विचारों और सिद्धांतों के बल पर युद्ध लड़ा था।
हालांकि उनकी यह माँग अस्वीकार कर दी गई और 23 मार्च 1931 को उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई। लेकिन यह फाँसी सिर्फ एक मौत नहीं थी, बल्कि पूरे भारत में क्रांति की चिंगारी को ज्वाला में बदलने वाली एक घटना बन गई।
इस पत्र की महत्ता
यह पत्र फ़ांसी से ठीक पूर्व लिखा गया — भगत सिंह की क्रांतिकारी प्रेरणा और दृढ़ प्रतिज्ञा का अद्भुत दस्तावेज़ है।
जहां इनकी सच्ची मंशा — “बाँधकर न जीना”, और “क्रांति का प्रतीक बने रहना” — स्पष्ट है, वहीं यह विचार दर्शाता है कि उनकी मृत्यु अपने जीवन से कहीं ऊंची धरोहर है।
यह न सिर्फ़ व्यक्तिगत पत्र, बल्कि युवाओं के लिए एक संकल्प-पत्र है — जिसमें उन्होंने देशभक्ति और बलिदान की भावना जगाने का दृढ़ संकल्प व्यक्त किया।
एक प्रेरणा जो आज भी जीवित है
भगत सिंह का यह आख़िरी पत्र आज भी हमें यह सिखाता है कि किसी विचार के लिए मरना, एक पूरे युग को जगा सकता है। उनका बलिदान केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं था, वह एक विचारधारा की अमरता थी। इस पत्र की पंक्तियाँ आज भी करोड़ों भारतीयों के दिलों में गूंजती हैं और उन्हें यह याद दिलाती हैं कि आज़ादी केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है।
भगत सिंह का आख़िरी ख़त इतिहास का वह दस्तावेज़ है जिसे केवल पढ़ा नहीं जाता, बल्कि महसूस किया जाता है। यह एक क्रांतिकारी की अंतिम पुकार है — अपने देशवासियों के नाम, आने वाली पीढ़ियों के नाम। और जब भी कोई युवा अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है, तो उसमें भगत सिंह की वही भावना जीवित होती है।
आज भी यह आवाज़ गूंजती है — “इंकलाब ज़िंदाबाद!”
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. भगत सिंह ने आखिरी ख़त कब लिखा था?
भगत सिंह ने अपना आख़िरी ख़त 22 मार्च 1931 को लिखा था,
जो कि उनकी फाँसी से एक दिन पहले था।
2. भगत सिंह का आख़िरी ख़त किसके नाम था?
यह ख़त उनके साथियों और देशवासियों के नाम था, जिसमें उन्होंने अपने विचार, भावनाएं और
शहादत के पीछे की सोच को साझा किया था।
3. Bhagat Singh ने फाँसी की सज़ा के बजाय क्या माँग की थी?
Bhagat Singh ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया था कि उन्हें अपराधी की तरह फाँसी पर न लटकाया जाए,
बल्कि युद्धबंदी के रूप में तोप से उड़ाया जाए।
4. भगत सिंह का आख़िरी ख़त कहाँ पढ़ा जा सकता है?
भगत सिंह का आख़िरी ख़त आप Marxists Internet Archive (marxists.org) पर हिंदी में पढ़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, “Letters of Bhagat Singh” जैसी पुस्तकों और दस्तावेज़ों में भी यह उपलब्ध है।
5. Bhagat Singh के आखिरी ख़त में क्या खास बात थी?
इस पत्र में Bhagat Singh ने दिखाया कि वे केवल क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक विचारशील लेखक और दूरदर्शी थे। उन्होंने मृत्यु को अपने सिद्धांतों की जीत के रूप में स्वीकार किया और युवाओं से प्रेरित होकर आगे बढ़ने की उम्मीद जताई।
6. Bhagat Singh की शहादत का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
Bhagat Singh की शहादत ने देशभर में युवाओं को प्रेरित किया।उनके बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी
और उन्हें अमर क्रांतिकारी बना दिया।
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