बुद्ध पूर्णिमा : जीवन, ज्ञान और निर्वाण का पर्व

Buddh Purnima

बुद्ध पूर्णिमा 2025: भगवान बुद्ध का जीवन, संदेश और वैशाख पूर्णिमा का महत्व

भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है।

यह पर्व न केवल भगवान बुद्ध के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, बल्कि यह वह दिन भी है जब उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और अंततः महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए।

वर्ष 2025 में यह पावन दिन 12 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि 11 मई की शाम 06:55 बजे आरंभ होकर 12 मई की शाम 07:22 बजे तक रहेगी।

इसी अवधि में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।

भगवान बुद्ध का जीवन परिचय: सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा

गौतम बुद्ध, जिनका जन्म 623 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था, सिद्धार्थ गौतम के रूप में एक क्षत्रिय राजकुमार थे। उनका जीवन विलासिता से भरा था, लेकिन उन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्यागकर सत्य की खोज का मार्ग चुना। उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अपना घर त्यागा और ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से कठिन तपस्या की। अंततः उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान की प्राप्ति की और गौतम बुद्ध कहलाए। बुद्ध पूर्णिमा का दिन इन्हीं तीन प्रमुख घटनाओं – जन्म, ज्ञान और निर्वाण – का प्रतीक है।

इस पर्व को मनाने का तरीका भले ही अलग-अलग स्थानों पर भिन्न हो, लेकिन इसके मूल में श्रद्धा, करुणा और आत्मनिरीक्षण की भावना होती है। भारत के बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे स्थलों पर यह पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। बौद्ध अनुयायी विशेष रूप से मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं, भगवान बुद्ध की मूर्तियों को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाते हैं, पुष्प और दीप अर्पित करते हैं। साथ ही, उपदेशों का श्रवण करते हैं और उनके जीवन से जुड़े प्रसंगों को स्मरण करते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा पर दान और सेवा कार्यों का महत्व

Buddh Purnima के दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है।

अनेक अनुयायी इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन दान करते हैं।

कुछ लोग रक्तदान, चिकित्सा शिविर और भोजन वितरण जैसे सेवा कार्यों में भी भाग लेते हैं।

यह सब बुद्ध के करुणा और सेवा के सिद्धांतों को आत्मसात करने का प्रतीक माना जाता है।

बुद्ध के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उन्होंने मध्यम मार्ग की शिक्षा दी, यानी जीवन में अत्यधिक विलासिता और अत्यधिक तपस्या – दोनों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का वर्णन किया, जो जीवन के दुखों से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाते हैं। ये शिक्षाएं न केवल बौद्ध धर्म का आधार हैं, बल्कि आज की भागदौड़ भरी दुनिया में मानसिक शांति पाने के उपाय भी प्रदान करती हैं।

बुद्ध पूर्णिमा पर व्रत रखने की परंपरा भी है।

बहुत से श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं या एक समय भोजन करते हैं। वे ध्यान, प्रार्थना और आत्ममंथन में समय बिताते हैं। यह आत्मा की शुद्धि का अवसर होता है, जब व्यक्ति अपने भीतर झांककर अपने कर्मों और विचारों का मूल्यांकन करता है।

अप्प दीपो भव का संदेश

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार,

गौतम बुद्ध ने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने अनुयायियों को ‘अप्प दीपो भव’ यानी “स्वयं दीपक बनो” का संदेश दिया था।

यह एक अत्यंत प्रेरणादायक विचार है जो हमें यह सिखाता है कि हमें स्वयं अपने भीतर प्रकाश की खोज करनी चाहिए

और अपने जीवन का मार्गदर्शन खुद करना चाहिए।

विश्व के अनेक देशों में भी बुद्ध पूर्णिमा को बड़े उत्साह से मनाया जाता है, विशेषकर श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, जापान, चीन, कोरिया, और वियतनाम में। इन देशों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है और बड़ी श्रद्धा के साथ जुलूस, पूजा-पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

बौद्ध विहारों को सुंदर फूलों और दीयों से सजाया जाता है,

और रात्रि में विशेष ध्यान सत्रों का आयोजन किया जाता है।

आधुनिक जीवन में बुद्ध के उपदेशों की प्रासंगिकता

आधुनिक युग में, जब व्यक्ति बाहरी भौतिक सुखों की दौड़ में अपनी मानसिक शांति को खो बैठता है, बुद्ध पूर्णिमा आत्मिक संतुलन की याद दिलाती है। यह दिन हमें आत्मचिंतन का अवसर देता है और बताता है कि जीवन में शांति, प्रेम और करुणा कितनी महत्वपूर्ण हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि बाहरी संसार में उत्तर खोजने के बजाय, अपने भीतर झांकना ही वास्तविक समाधान है।

बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक पर्व नहीं है, यह एक विचारधारा है, एक जीवन दर्शन है।

यह दिन हमें गौतम बुद्ध के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।

जब हम उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं,

तभी यह पर्व अपने वास्तविक अर्थ में सफल होता है।

इस प्रकार, बुद्ध पूर्णिमा (Buddh Purnima)2025 का यह पावन अवसर न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का दिन है,

बल्कि यह एक नई शुरुआत, आत्मविकास और आंतरिक जागरूकता का पर्व भी है।

आइए, इस बुद्ध पूर्णिमा पर हम भी अपने भीतर झांकें, मन की अशांति को त्यागें,

और बुद्ध के शांति और करुणा के संदेश को अपने जीवन में स्थान दें।

यही इस पर्व की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

FAQs:

(Buddh Purnima)बुद्ध पूर्णिमा 2025

प्रश्न 1: बुद्ध पूर्णिमा 2025 में कब मनाई जाएगी?
 बुद्ध पूर्णिमा 2025 में सोमवार, 12 मई को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि 11 मई को शाम 6:55 बजे शुरू होकर 12 मई को शाम 7:22 बजे समाप्त होगी। इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण तीनों घटनाएं जुड़ी हुई हैं।

प्रश्न 2: बुद्ध पूर्णिमा का धार्मिक महत्व क्या है?
Buddh Purnimaका धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सर्वोच्च पर्व माना जाता है।

प्रश्न 3: Buddh Purnimaपर कौन-कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?
बुद्ध पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा को स्नान कराकर नवीन वस्त्र पहनाए जाते हैं, पुष्प अर्पित किए जाते हैं, मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं और बौद्ध ग्रंथों का पाठ होता है। साथ ही, कई लोग उपवास रखते हैं, ध्यान करते हैं और जरूरतमंदों को दान देते हैं।

प्रश्न 4: क्या बुद्ध पूर्णिमा केवल बौद्ध धर्म के लोग ही मनाते हैं?

नहीं, बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव केवल बौद्ध धर्म के अनुयायी ही नहीं,

बल्कि अन्य धर्मों और समुदायों के लोग भी श्रद्धा से मनाते हैं,

विशेषकर भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण एशियाई देशों में।

प्रश्न 5:  क्या बुद्ध पूर्णिमा पर दान-पुण्य का कोई विशेष महत्व है?

बुद्ध पूर्णिमा पर दान-पुण्य को विशेष पुण्यदायी माना गया है।

इस दिन लोग अन्न, वस्त्र, दवाइयाँ या अन्य ज़रूरत की चीजें दान करते हैं।

सेवा कार्य जैसे रक्तदान या भोजन वितरण भी बड़े पैमाने पर किए जाते हैं।

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