गीता प्रेस, गोरखपुर: एक आध्यात्मिक धरोहर
गोरखपुर स्थित गीता प्रेस न सिर्फ एक किताब छापने वाला संस्थान है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक चेतना का एक ऐसा केंद्र है, जिसने करोड़ों लोगों के जीवन में भक्ति, नैतिकता और ज्ञान का संचार किया है। इसकी शुरुआत 1923 में सेठ जयदयाल गोयंदका और घनश्यामदास जालान ने एक संकल्प के साथ की थी—“श्रीमद्भगवद्गीता” और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों को घर-घर पहुंचाया जाए ताकि लोग जीवन का सही मार्ग समझ सकें।
गीता प्रेस शुरुआत कब और कैसे हुई?
उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था, धार्मिक ग्रंथों की छपाई या तो अंग्रेज़ी में होती थी या अत्यधिक महंगे दामों पर मिलती थी, जिससे आम आदमी इनसे दूर हो गया था। जयदयाल जी एक वैष्णव भक्त थे, जो भगवद्गीता के संदेश से बेहद प्रभावित थे। एक दिन जब उन्होंने देखा कि लोगों के पास धर्म की मूल बातें जानने का कोई सरल माध्यम नहीं है,
तब उन्होंने “गीता प्रेस” की नींव रखी।
इस प्रेस की सबसे खास बात यह रही कि यह सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि धर्मसेवा का केंद्र रहा। यहाँ छपी हर किताब का मूल्य इतना कम रखा जाता था कि गरीब से गरीब आदमी भी इसे खरीद सके। उदाहरण के तौर पर, आज भी आपको श्रीमद्भगवद्गीता 10 रुपए से लेकर 30 रुपए तक मिल जाती है, जबकि इसकी सामग्री और गुणवत्ता किसी भी बड़े प्रकाशन से कम नहीं।
कैसी किताबें प्रकाशित होती हैं?
Gita Press में जो पुस्तकें छपती हैं, वे न केवल शास्त्र आधारित होती हैं, बल्कि संतों, विद्वानों और परंपरा से जुड़े अनुभवी लेखकों द्वारा तैयार की जाती हैं। यहाँ पर श्रीमद्भागवत, रामायण, उपनिषद, पुराण, दुर्गा सप्तशती, हनुमान चालीसा, और नैतिक कहानियों से लेकर बाल संस्कार साहित्य तक हजारों किताबें छपी हैं।
गीता प्रेस की एक खास मासिक पत्रिका है — “कल्याण”, जो 1926 से अब तक बिना रुके प्रकाशित हो रही है। हर अंक में किसी एक विषय पर आधारित संतों के लेख, अनुभव, कथाएँ और जीवनशैली के दिशा-निर्देश होते हैं।
उदाहरण के लिए – ‘रामायण विशेषांक’, ‘महाभारत विशेषांक’, ‘संत विशेषांक’, जो कि लाखों पाठकों के जीवन में परिवर्तन ला चुके हैं।
इनकी पुस्तकों को इतनी ‘Authenticity’ क्यों मिलती है?
एक बेहद प्रेरणादायक कहानी Geeta Press के एक कर्मचारी की है जो वहां केवल 100 रुपये मासिक वेतन पर काम करता था। जब उससे पूछा गया कि इतने कम वेतन में कैसे काम कर लेते हो, तो उसने जवाब दिया – “मैं वेतन नहीं, पुण्य कमाने आया हूँ। ये सेवा है, नौकरी नहीं।” ऐसी भावनाएं गीता प्रेस को औरों से अलग बनाती हैं।
यह प्रेस आज भी गोरखपुर में स्थित है और यहाँ एक सुंदर मंदिर, संग्रहालय और प्रेस वर्कशॉप भी है जहाँ आप देख सकते हैं कि पुराने ढंग की छपाई कैसे होती थी। यहां आने वाले लोग आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं।
आज जब तकनीक का जमाना है, लोग मोबाइल और स्क्रीन पर किताबें पढ़ना पसंद करते हैं, तब भी गीता प्रेस की किताबें लाखों की संख्या में बिकती हैं। शायद इसलिए क्योंकि उसमें सिर्फ शब्द नहीं, श्रद्धा, परंपरा और संस्कार छपे होते हैं। यही वजह है कि गीता प्रेस की किताबों को प्रामाणिकता (Authenticity) का प्रतीक माना जाता है।
गीता प्रेस की खासियतें
- 15 से अधिक भाषाओं में धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन
- 72 करोड़ से अधिक पुस्तकों का वितरण
- 100 वर्षों की धार्मिक सेवा
- बिना किसी सरकारी अनुदान के आत्मनिर्भर कार्य
- UNESCO द्वारा “भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक” का सम्मान
युनेस्को (UNESCO) ने भी गीता प्रेस को भारत की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक के रूप में सम्मानित किया है। इसका कोई विज्ञापन नहीं, कोई ब्रांड एंबेसडर नहीं, फिर भी आज यह घर-घर में सम्मान से पढ़ी जाती है।
गीता प्रेस ने यह सिद्ध कर दिया कि जब सेवा भावना ईमानदार हो, उद्देश्य साफ हो, और मार्ग धर्म का हो—तो सफलता अपने आप कदम चूमती है।
यह सिर्फ किताबों की प्रेस नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही भारतीय संस्कृति की अमर छाया है।
गीता प्रेस द्वारा अब तक प्रकाशित और बिक चुकी पुस्तकों का आंकड़ा (2025 तक):
अब तक कुल प्रकाशित पुस्तकें:
लगभग 72 करोड़ (720 मिलियन) से भी अधिक पुस्तकें
प्रकाशित भाषाएं:गीता प्रेस अब तक 15 से अधिक भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित कर चुका है,
जिनमें प्रमुख हैं: हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, गुजराती, मराठी, बंगाली, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, उर्दू आदि।
सबसे ज़्यादा बिकने वाली पुस्तकें:
विशेष रूप से-
- श्रीमद्भगवद्गीता
- रामचरितमानस (तुलसीदास कृत)
- हनुमान चालीसा
- श्रीराम कथा
- श्रीमद्भागवत महापुराण
- कल्याण पत्रिका (1926 से जारी) – जिसके करोड़ों अंक बिक चुके हैं।
प्रकाशन की दर:
गीता प्रेस हर साल करोड़ों प्रतियां छापता है। कई किताबें तो लाखों की संख्या में हर महीने बिक जाती हैं।बिना विज्ञापन और बिना मुनाफे के उद्देश्य से किताबें बेची हैं, जो अपने-आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
यही कारण है कि यह संस्था न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर के हिंदू समाज मेंआस्था और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।
गीता प्रेस अपना विज्ञापन क्यों नहीं करता? जानिए इसके पीछे की आध्यात्मिक सोच
गीता प्रेस एक अद्भुत संस्था है, जो व्यवसाय नहीं, सेवा का केंद्र है।
आज के दौर में जब हर प्रकाशन और ब्रांड विज्ञापन के ज़रिए अपनी बिक्री बढ़ाने की होड़ में लगा है, वहीं गीता प्रेस एक सदी से बिना किसी प्रचार-प्रसार के करोड़ों दिलों तक पहुंच चुका है। इसका कारण सिर्फ रणनीति नहीं, बल्कि इसके पीछे छुपी एक गहरी धार्मिक और नैतिक सोच है।
तो आखिर गीता प्रेस विज्ञापन क्यों नहीं करता?
1. धर्म का प्रचार प्रचार से नहीं, आचरण और श्रद्धा से होता है-
Gita Press के संस्थापकों का मानना था कि धार्मिक ग्रंथों को प्रचार के माध्यम से बेचना एक तरह से धर्म का व्यवसायीकरण करना होगा। उनकेअनुसार, धर्म की बातों को खुद लोग ढूंढते हैं, उन्हें बेचना नहीं चाहिए।
2.शुद्ध सेवा भावना-
यह संस्था पूरी तरह से गैर-लाभकारी (non-profit) है। यहाँ के कर्मचारी सेवा भावना से कार्य करते हैं और गीता प्रेस का उद्देश्य केवल एक है — धर्म का प्रचार और समाज में नैतिकता व संस्कारों का पुनर्जागरण।
विज्ञापन में खर्च करने से बेहतर वे इसे सस्ती किताबों की छपाई में लगाते हैं।
3. कर्म ही प्रचार है-
गीता प्रेस को “वाक्य नहीं, कार्य से प्रचार” में विश्वास है। इसकी किताबों की गुणवत्ता, सच्चाई, और विश्वसनीयता ही इसका सबसे बड़ा विज्ञापन है। जो एक बार यहाँ से पुस्तकखरीदता है, वह खुद दूसरों को बताता है।
यही मौन प्रचार (word of mouth) है जो आज भी गीता प्रेस की पहचान बना हुआ है।
4. लोभ और मार्केटिंग से दूरी-
Geeta Press कभी किसी सेल या डिस्काउंट के नाम पर अपनी किताबें नहीं बेचता। वह धर्म को ‘मार्केट प्रोडक्ट’ नहीं मानता। यही कारण है कि इसके पास कोई ब्रांड एंबेसडर नहीं, कोई flashy packaging नहीं,फिर भी इसकी किताबें हर घर में मिल जाएंगी।
प्रेरक उदाहरण
आपको जानकर हैरानी होगी कि गीता प्रेस की भगवद गीता की कुछ प्रति सिर्फ ₹10 में मिलती है, जो बाज़ार में ₹100-₹200 में बिकने वाले संस्करणो से अधिक सटीक और पवित्र मानी जाती है।
फिर भी संस्था मुनाफे के पीछे नहीं भागती, क्योंकि उनका उद्देश्य है — ज्ञान बाँटना, व्यापार नहीं।
गीता प्रेस विज्ञापन इसलिए नहीं करता क्योंकि वह धर्म, सेवा और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है, न कि बाजार और मुनाफे का। यही आत्मिक दृष्टिकोण इसे दूसरों से अलग और विशिष्ट बनाता है।
Gita Press को किसी प्रचार की आवश्यकता नहीं, क्योंकि उसका हर पाठक उसका प्रचारक है।
गीता प्रेस कहाँ स्थित है?
Gita Press का मुख्यालय गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
पूरा पता- गीता प्रेस रोड, घासी कटरा, गोरखपुर – 273005, उत्तर प्रदेश, भारत
राम मंदिर, प्रेस का म्यूज़ियम, और प्रेस वर्कशॉप भी स्थित है जहाँ आगंतुक जाकर प्रेस के कार्य को देख सकते हैं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1: गीता प्रेस की किताबें कहां से खरीद सकते हैं?
गीता प्रेस की वेबसाइट www.gitapress.org या स्थानीय धार्मिक पुस्तकों की दुकानों से।
2: क्या Gita Press की पुस्तकें ऑनलाइन उपलब्ध हैं?
हां, Amazon, Flipkart और गीता प्रेस की आधिकारिक वेबसाइट पर।
3: क्या Gita press सिर्फ हिंदू धर्म की पुस्तकें प्रकाशित करता है?
हां, यह विशुद्ध रूप से हिंदू धर्मग्रंथों और भारतीय दर्शन पर आधारित है।
4: क्या Gita Press मुनाफा कमाने वाली संस्था है?
नहीं, यह एक गैर-लाभकारी संस्था है जो सेवा भावना से काम करती है।
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