भारत विविधताओं का देश है, और यहां हर मंदिर की एक अपनी अनूठी पहचान होती है। राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक गांव में स्थित करणी माता मंदिर इन्हीं अनोखे धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर केवल अपनी वास्तुकला या आध्यात्मिकता के लिए ही नहीं, बल्कि हजारों चूहों की उपस्थिति के लिए भी प्रसिद्ध है। इन्हीं चूहों की वजह से इस मंदिर को आमतौर पर ‘चूहों का मंदिर’ कहा जाता है।
इस मंदिर में रहने वाले चूहे कोई आम जीव नहीं माने जाते, बल्कि उन्हें पवित्र आत्माओं का प्रतीक माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इन चूहों को प्रसाद खिलाते हैं और उनके बीच घूमने को सौभाग्य समझते हैं।
करणी माता कौन थीं?
करणी माता को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। उनका जन्म 14वीं सदी में हुआ था और वे चारण जाति की थीं। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1387 को राजस्थान के जोधपुर ज़िले के सुआप (Suap) गांव में चारण जाति में हुआ था। उनका असली नाम रिड़ी बाई था, और वे गढ़ी लोहावट के मेहोजी चारण की पुत्री थीं।उनके जीवन से जुड़ी कई कथाएं राजस्थान में लोककथाओं के रूप में प्रसिद्ध हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक सेवा और समाज कल्याण में लगाया।
माता करणी को एक दिव्य शक्ति प्राप्त थी और उन्हें भविष्यवाणी करने और चमत्कार करने के लिए जाना जाता था। उन्होंने बीकानेर और जोधपुर के राजघरानों को संरक्षण भी प्रदान किया था।
माता करणी को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है।
उनके अनुयायियों का मानना है कि उनके पास अलौकिक शक्तियाँ थीं और वे चमत्कारी रूप से लोगों की रक्षा करती थीं।
उन्होंने बचपन में शादी तो की थी, लेकिन जल्द ही गृहस्थ जीवन त्याग कर तपस्या और सेवा को अपना जीवन बना लिया। उन्होंने अपनी छोटी बहन को अपने पति से विवाह करवा दिया और स्वयं संन्यासिनी बन गईं।
करणी माता ने राठौर राजवंश की नींव मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जोधपुर और बीकानेर रियासतों की स्थापना में सहयोग किया और दोनों रियासतों के राजाओं को आशीर्वाद दिया।
कहा जाता है कि करणी माता ने 151 साल तक जीवित रहते हुए कई चमत्कार किए और वर्ष 1538में वे देशनोक के पास के जंगल में अदृश्य हो गईं। अनुयायियों का मानना है कि वे कभी मरी नहीं-बल्कि जीवित ही दिव्य रूप में लीन हो गईं।
मंदिर में चूहे क्यों हैं?
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां रहने वाले करीब 25,000 चूहे, जिन्हें ‘काबा’ कहा जाता है। मान्यता है कि ये चूहे करणी माता के अनुयायी थे, जो मृत्यु के बाद इंसानों के रूप में पुनर्जन्म न लेकर चूहों के रूप में इस मंदिर में वास करने लगे।
यहां चूहों को न केवल पूजा जाता है, बल्कि उन्हें प्रसाद खिलाया जाता है, दूध पिलाया जाता है और यदि कोई चूहा आपके पैरों से होकर गुजर जाए, तो इसे अत्यंत शुभ संकेत माना जाता है।
सफेद चूहों की विशेष मान्यता
मंदिर में अधिकतर चूहे काले होते हैं, लेकिन कुछ गिने-चुने सफेद चूहे भी देखे जाते हैं। इन्हें अत्यंत पवित्र और करणी माता के परिवार के दिव्य स्वरूप माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति सफेद चूहे को देख लेता है, तो उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु सफेद चूहे की एक झलक पाने की लालसा लिए मंदिर परिसर में घंटों बैठते हैं।
मंदिर की वास्तुकला
करणी माता मंदिर की वास्तुकला भी उतनी ही आकर्षक है जितनी इसकी मान्यताएं। यह मंदिर राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली का एक अद्भुत उदाहरण है।
प्रवेश द्वार चांदी की नक्काशी से सुसज्जित है। मंदिर का गर्भगृह संगमरमर से बना है और उसमें करणी माता की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के राजा गंगा सिंह द्वारा 20वीं सदी की शुरुआत में कराया गया था।
मंदिर में दर्शन और रीति-रिवाज
प्रसाद चूहों के साथ साझा किया जाता है। यदि कोई चूहा आपके ऊपर चढ़ जाए, तो इसे करणी माता का आशीर्वाद माना जाता है।मंदिर में किसी चूहे को मारना पाप है। यदि ऐसा गलती से हो जाए, तो उसकी चांदी की मूर्ति बनवाकर मंदिर को दान देनी होती है।मंदिर में नंगे पैर प्रवेश अनिवार्य है,
जिससे श्रद्धालु चूहों के और भी करीब होते हैं।
मंदिर कैसे पहुंचे?
स्थान: देशनोक गांव, बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: देशनोक रेलवे स्टेशन (मंदिर से लगभग 1 किमी)।
बीकानेर से टैक्सी, बस या ट्रेन द्वारा मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
पर्यटन और विदेशी आकर्षण
करणी माता मंदिर की अनूठी परंपरा विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करती है।
चूहों के बीच बिना भय के श्रद्धालु घूमते हैं, यह दृश्य कई विदेशी कैमरों में कैद होता है।
बहुत से पर्यटक इसे “India’s Rat Temple” के नाम से जानते हैं
और इसे देखने विशेष रूप से राजस्थान की यात्रा करते हैं।
आस्था और अनोखी परंपरा का संगम
करणी माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, श्रद्धा और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है।
जहां लोग चूहों को मारने से डरते हैं, वहीं इस मंदिर में उन्हें पूजा जाता है।
यह मंदिर हमें सिखाता है कि श्रद्धा का रूप कहीं भी, किसी में भी हो सकता है –
चाहे वह एक चूहा ही क्यों न हो।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1.करणी माता मंदिर में कितने चूहे हैं?
लगभग 25,000 से अधिक चूहे मंदिर में निवास करते हैं।
2. सफेद चूहा दिखने पर क्या होता है?
यह अत्यंत शुभ माना जाता है और जीवन में खुशहाली आने की मान्यता है।
3. मंदिर कब खुलता और बंद होता है?
मंदिर सुबह 4 बजे खुलता है और रात 10 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
4. क्या मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क है?
नहीं, मंदिर में प्रवेश पूर्णतः निशुल्क है।
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