भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर-कोनेरू हम्पी की जीवनी
कोनेरू हम्पी — एक ऐसा नाम जिसने भारतीय शतरंज को वैश्विक मंच पर ऊंचाइयों तक पहुँचाया। जन्म 31 मार्च 1987 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुआ। बचपन से ही उनमें बेजोड़ प्रतिभा थी, और उन्होंने वह कर दिखाया जिसे कभी असंभव माना जाता था — सिर्फ़ 15 साल की उम्र में शतरंज ग्रैंडमास्टर बनने वाली सबसे कम उम्र की महिला बन गईं। आज वे न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया की सबसे सम्मानित महिला शतरंज खिलाड़ियों में गिनी जाती हैं।
कोनेरू हम्पी का जन्म एक साधारण तेलुगु परिवार में हुआ। उनके पिता, अशोक कोनेरू, एक राष्ट्रीय स्तर के शतरंज खिलाड़ी थे और उन्होंने ही हम्पी को इस खेल से परिचित कराया। हम्पी की प्रतिभा इतनी असाधारण थी कि उन्होंने मात्र 6 वर्ष की उम्र में शतरंज खेलना शुरू कर दिया और जल्दी ही अपने आयु वर्ग में खिताब जीतने लगीं।
उनका नाम ‘हम्पी’ दरअसल ‘चैम्पी’ (Champion) से प्रेरित होकर रखा गया था, जो यह दर्शाता है कि उनके माता-पिता को उनकी प्रतिभा पर शुरू से विश्वास था।
कम उम्र में बड़ा मुकाम –प्रतियोगिताओं में बेजोड़ प्रदर्शन
कोनेरू हम्पी ने अपने शतरंज करियर की शुरुआत बहुत ही कम उम्र में कर दी थी और जल्द ही वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने लगीं। साल 1997 में उन्होंने वर्ल्ड अंडर-10 चेस चैंपियनशिप जीतकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद, 1999 से 2001 के बीच उन्होंने लगातार तीन बार विश्व कनिष्ठ शतरंज चैंपियनशिप (U-12, U-14 और U-16) में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। फिर आया वह ऐतिहासिक वर्ष — 2002, जब मात्र 15 साल और 1 महीने की उम्र में उन्होंने ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल कर लिया। इस उपलब्धि के साथ उन्होंने जूडिथ पोल्गर का रिकॉर्ड तोड़ते हुए उस समय की सबसे युवा महिला ग्रैंडमास्टर बनने का गौरव प्राप्त किया। यह भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के शतरंज प्रेमियों के लिए गर्व का क्षण था।
भारत को दिलाया गर्व-हम्पी का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय योगदान
हम्पी का करियर यहीं नहीं रुका। उन्होंने विश्व के लगभग हर प्रमुख टूर्नामेंट में भाग लिया और शानदार प्रदर्शन किया। 2019 में उन्होंने मास्को में आयोजित FIDE महिला वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीतकर एक नया अध्याय लिखा। इसके बाद, 2020 में उन्होंने फिर से रैपिड शतरंज में विश्व खिताब जीतकर साबित कर दिया कि तेज़ फॉर्मेट में भी वे बेजोड़ हैं। वर्ष 2008 में महिला विश्व शतरंज चैंपियनशिप में उन्होंने नादेझ्दा कोसिंटसेवा, झाओ शुए और एलेक्जेंड्रा कोस्टेनियुक जैसी दिग्गज खिलाड़ियों को हराकर फाइनल में प्रवेश किया, हालांकि फाइनल में उन्हें कोस्टेनियुक से हार का सामना करना पड़ा और वे उपविजेता रहीं।
2009 से 2011 के बीच आयोजित FIDE महिला ग्रां प्री सीरीज़ में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और कई लेग्स में जीत दर्ज की। साल 2006 के एशियन गेम्स में उन्होंने भारत की ओर से भाग लेते हुए टीम को स्वर्ण पदक दिलाया, और 2020 के ऑनलाइन चैस ओलंपियाड में उन्होंने भारतीय टीम को रूस के साथ साझा गोल्ड दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
पुरस्कार और सम्मान-जब देश ने सराहा
कोनेरू हम्पी न केवल भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर बनीं, बल्कि उन्होंने देश की लाखों लड़कियों को यह विश्वास भी दिलाया कि शतरंज जैसे खेल में महिलाएं भी शीर्ष पर पहुँच सकती हैं। उन्होंने शतरंज को महिला खिलाड़ियों के लिए एक संभावित करियर विकल्प बनाया और इस दिशा में नई राहें खोलीं। वह भारत पेट्रोलियम की ब्रांड एंबेसडर भी रह चुकी हैं। उन्हें भारत सरकार ने उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 2003 में अर्जुन पुरस्कार और 2007 में पद्म श्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया।
व्यक्तिगत जीवन-मातृत्व और खेल का अद्भुत संतुलन
हम्पी का व्यक्तिगत जीवन भी प्रेरणादायक है। 2014 में उनकी शादी अनुराग मामिडीपति से हुई और 2017 में वे मां बनीं। मातृत्व के बाद अधिकांश खिलाड़ी अपने करियर से दूरी बना लेते हैं, लेकिन हम्पी ने अपने खेल से कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने दोबारा खेल में वापसी की और और भी अधिक आत्मविश्वास के साथ खेलते हुए विश्व रैपिड शतरंज खिताब जीतकर दिखा दिया कि वे अभी भी शिखर पर हैं।
नई पीढ़ी के सामने मिसाल- हम्पी बनाम दिव्या देशमुख 2024 फाइनल
2025 में आयोजित FIDE महिला विश्व कप में उन्होंने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया और फाइनल तक पहुँचीं। हालांकि, इस बार युवा और प्रतिभावान खिलाड़ी 19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने उन्हें हराकर नया इतिहास रच दिया। यह पराजय किसी हार की तरह नहीं देखी जानी चाहिए, बल्कि इसे एक लीजेंड की मौजूदगी में एक नई पीढ़ी के उत्थान का प्रतीक माना जाना चाहिए। कोनेरू हम्पी की यात्रा संघर्ष, समर्पण और अनुशासन की मिसाल है, जो हर युवा को प्रेरणा देती है कि अगर जुनून हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।
कोनेरू हम्पी – एक प्रेरणा, एक प्रतीक
कोनेरू हम्पी एक लीजेंड हैं — उनकी उपलब्धियाँ सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि समर्पण, परिवार का समर्थन और आत्मविश्वास किसी भी बच्चे को विश्वस्तरीय खिलाड़ी बना सकता है।
उनकी कहानी भारत के हर युवा के लिए एक प्रेरणा है — ख़ासकर उन बेटियों के लिए जो मानती हैं कि कोई भी सपना बहुत बड़ा नहीं होता।
FAQs- कोनेरू हम्पी से जुड़े सामान्य प्रश्न
1.कोनेरू हम्पी कौन हैं?
कोनेरू हम्पी एक भारतीय शतरंज ग्रैंडमास्टर हैं,
जिन्होंने मात्र 15 वर्ष की उम्र में यह खिताब हासिल किया था।
वे भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर हैं और विश्व स्तर पर कई प्रतियोगिताएं जीत चुकी हैं।
जिनमें वर्ल्ड रैपिड चेस चैंपियनशिप और एशियन गेम्स शामिल हैं।
2. कोनेरू हम्पी ने ग्रैंडमास्टर का खिताब कब और कितनी उम्र में जीता?
उन्होंने 2002 में, सिर्फ 15 साल और 1 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीता था।
उस समय वह दुनिया की सबसे युवा महिला ग्रैंडमास्टर बनी थीं।
3.कोनेरू हम्पी ने कौन-कौन से प्रमुख खिताब जीते हैं?
उन्होंने दो बार महिला विश्व रैपिड शतरंज चैंपियनशिप (2019 और 2020), 2008 में महिला वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप की रनर-अप ट्रॉफी, 2006 में एशियन गेम्स गोल्ड, और 2020 में ऑनलाइन चेस ओलंपियाड में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता है।
4.कोनेरू हम्पी को कौन-कौन से राष्ट्रीय सम्मान मिले हैं?
उन्हें 2003 में अर्जुन पुरस्कार और 2007 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया गया।
5.क्या कोनेरू हम्पी शादीशुदा हैं और उनका पारिवारिक जीवन कैसा है?
जी हां, उन्होंने 2014 में अनुराग मामिडीपति से विवाह किया। 2017 में वह मां बनीं,
लेकिन मातृत्व के बाद भी उन्होंने शतरंज में वापसी की और शानदार प्रदर्शन जारी रखा।
6. हाल ही में कोनेरू हम्पी की सबसे उल्लेखनीय प्रतियोगिता कौन सी रही?
2025 में उन्होंने FIDE महिला विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई, जहाँ उन्हें 19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने हराया।
यह मैच भारतीय शतरंज के लिए ऐतिहासिक था क्योंकि फाइनल में दोनों खिलाड़ी भारत से थीं।
7.कोनेरू हम्पी की प्रेरणा कौन थीं?
हम्पी के पिता अशोक कोनेरू खुद एक शतरंज खिलाड़ी थे और उन्होंने ही हम्पी को शतरंज से परिचित कराया।
वे शुरू से उनकी कोच और मार्गदर्शक रहे हैं।
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