परशुराम(Parshuram)जयंती हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन अक्षय तृतीया भी पड़ती है, जिससे इस दिन का पुण्यफल और भी अधिक बढ़ जाता है।
परशुराम(Parshuram)कौन थे?
भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। वे क्षत्रियों के अत्याचारों से त्रस्त समाज के उद्धारक माने जाते हैं। उनके पास भगवान शिव से प्राप्त अद्भुत परशु (कुल्हाड़ी) थी, जिससे उन्होंने अन्याय का अंत किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।बचपन से ही वे तेजस्वी, मेधावी और अनुशासित थे। उन्होंने अपने पिता से वेद, शास्त्र और तपस्या की शिक्षा प्राप्त की और बाद में भगवान शिव से शस्त्र विद्या सीखी।
परशुराम जी को ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों गुणों का संगम माना जाता है—वे ब्राह्मण कुल में जन्मे, परंतु क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अधर्म के विनाशक बने।
परशुराम के बचपन की प्रेरणादायक कहानियाँ
1. माता रेणुका की आज्ञा पालन की परीक्षा
एक दिन माता रेणुका नदी से पानी लेने गईं, जहां उन्होंने एक सुंदर गंधर्व को देखा और कुछ क्षणों के लिए मन विचलित हो गया। जब वे लौटकर आश्रम आईं, तो ऋषि जमदग्नि को यह आभास हो गया। उन्होंने इसे धर्म के विरुद्ध माना और अपने चारों पुत्रों को आज्ञा दी कि वे अपनी माता का वध करें।
तीनों बड़े पुत्रों ने पिता की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया, लेकिन पांचवें पुत्र परशुराम ने बिना किसी संकोच के पिता की आज्ञा मान ली और माता का वध कर दिया।
पिता ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा—तब परशुराम ने माता को पुनर्जीवित करने, भाइयों को पुनर्जीवित करने, और इस कार्य की स्मृति मिटा देने का वरदान माँगा।
यह कथा परशुराम जी की आज्ञाकारिता, विवेक, और करुणा को दर्शाती है।
2. भगवान शिव से दिव्य शस्त्र विद्या प्राप्त करना
परशुराम ने बचपन में ही यह जान लिया था कि धर्म की रक्षा केवल ज्ञान से नहीं, बल से भी होती है। इसलिए वे भगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) प्रदान किया और शस्त्र विद्या में पारंगत किया।
इस प्रकार, परशुराम जी शिव के परम भक्त और उनके शिष्य कहलाए।
3. एक गाय के लिए पितृ वध का प्रतिशोध
हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने महर्षि जमदग्नि की तपस्या से प्रसन्न होकर मिली कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया। परशुराम जब आश्रम लौटे और ये सुना, तो वे क्रोध में भर उठे। उन्होंने राजा का वध कर गाय को पुनः प्राप्त किया।
बाद में, राजा के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर दिया। यह देख परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से अन्यायी क्षत्रियों का संहार किया।
यह कहानी उनके धर्मरक्षक योद्धा बनने की शुरुआत है।
परशुराम जयंती 2025 में कब है?
तिथि: 30 अप्रैल 2025, बुधवार
तृतीया तिथि प्रारंभ: 29 अप्रैल, रात 10:03 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल, रात 11:27 बजे
यह तिथि अक्षय तृतीया के साथ भी मनाई जाती है, इसलिए इसे अत्यंत शुभ और कल्याणकारी दिन माना जाता है।
परशुराम जयंती का महत्व
- धर्म और न्याय की स्थापना: परशुराम जी ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाकर धर्म की पुनर्स्थापना की थी।
- शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण: वे ब्रह्मज्ञान में पारंगत थे, साथ ही युद्ध कौशल में भी निपुण थे।
- शक्ति और संयम का प्रतीक: वे गुस्से के बावजूद संयमित और सिद्ध पुरुष थे—उनकी कथा हमें धैर्य और धर्म की रक्षा की प्रेरणा देती है।
- नए युग के आरंभ का संकेत: ऐसी मान्यता है कि परशुराम जी कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को शस्त्र विद्या सिखाएंगे।
पूजन विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
- घर या मंदिर में भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- अक्षत, फूल, चंदन, तुलसी, धूप और दीप से पूजा करें।
- श्री विष्णु सहस्त्रनाम, परशुराम स्तुति, या विष्णु पुराण का पाठ करें।
- फलाहार करें और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
परशुराम(Parshuram)जयंती से जुड़ी कुछ रोचक बातें
- भगवान परशुराम अजर और अमर माने जाते हैं—वे आज भी धरती पर जीवित हैं, ऐसा विश्वास किया जाता है।
- परशुराम को भारतीय युद्ध शास्त्र का जनक माना जाता है। उन्होंने द्रोणाचार्य, भीष्म, और कर्ण जैसे योद्धाओं को शिक्षा दी।
- वे अपने माता-पिता के प्रति पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता के प्रतीक हैं।
रामायण में भगवान परशुराम का संबंध
भगवान परशुराम का प्रसंग रामायण के बालकाण्ड में आता है, जब भगवान श्रीराम ने जनकपुरी में शिव का धनुष तोड़ा था। यह घटना सीता स्वयंवर के समय की है।
परशुराम और शिव धनुष की कथा
राजा जनक ने घोषणा की थी कि जो भी योद्धा भगवान शिव के विशाल धनुष को उठाकर उसे तोड़ेगा, वही उनकी पुत्री सीता से विवाह करेगा। अनेकों राजा असफल हुए, लेकिन भगवान राम ने धनुष को सहजता से उठाकर तोड़ दिया।
धनुष टूटने की आवाज़ सुनकर परशुराम क्रोधित होकर स्वयंवर स्थल पर पहुंचे क्योंकि वह धनुष उनके आराध्य शिव का प्रतीक था और वे उसे अत्यंत पूजनीय मानते थे।
राम और परशुराम(Parshuram)का ऐतिहासिक संवाद
जब परशुराम ने राम को ललकारा और उनका बल परखना चाहा, तब श्रीराम ने अत्यंत विनम्र परंतु प्रभावशाली ढंग से कहा:
“मैं आपका सम्मान करता हूँ, परंतु यह कार्य मैं ही कर चुका हूँ। यदि आप चाहें, तो मुझे भी आजमा सकते हैं।”
राम का धैर्य, विनम्रता और तेज देखकर परशुराम को यह बोध हो गया कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु के अवतार हैं—जिनका स्थान अब वे स्वयं सौंप सकते हैं।
विष्णु से विष्णु तक
चूंकि परशुराम स्वयं विष्णु के छठे अवतार थे और राम सातवें, इसलिए यह प्रसंग दो विष्णु अवतारों के प्रत्यक्ष मिलन का है। यह घटना धर्म के हस्तांतरण का प्रतीक मानी जाती है—जहां परशुराम अपने युग से राम युग में धर्म की बागडोर सौंपते हैं।
(रामायण से जुड़ाव का सार)
- परशुराम और राम का मिलन पुराने युग से नए युग के प्रवेश का संकेत है।
- यह प्रसंग दिखाता है कि विनम्रता और संयम के साथ भी बल और धर्म की स्थापना संभव है।
- राम और परशुराम दोनों ही विष्णु के अवतार हैं—एक क्रोध और न्याय के रक्षक, तो दूसरे करुणा और मर्यादा के प्रतीक।
महाभारत में भगवान परशुराम(Parshuram)का संबंध
1. भीष्म पितामह के गुरु
महाभारत में परशुराम ने गंगा पुत्र देवव्रत (भीष्म) को शस्त्र विद्या सिखाई थी। भीष्म उनके परम शिष्य माने जाते हैं। एक बार जब भीष्म ने राजकुमारी अम्बा के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार किया, तो अम्बा ने परशुराम से न्याय की मांग की।
परशुराम ने भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन भीष्म ने उनका वध न करने की प्रतिज्ञा ली थी। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ, पर अंततः परशुराम ने भीष्म की दृढ़ता और शौर्य को देखकर युद्ध रोक दिया।
👉 यह प्रसंग गुरु-शिष्य की मर्यादा, धर्मसंकट और नारी न्याय की मांग का प्रतीक है।
2. कर्ण के गुरु
महाभारत में कर्ण, जो सूर्यदेव के पुत्र थे, उन्होंने ब्राह्मण वेश में भगवान परशुराम से शस्त्र विद्या प्राप्त की थी। परशुराम ने केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा देने का व्रत लिया था, इसलिए कर्ण ने अपनी पहचान छिपा ली।
जब एक दिन परशुराम थक कर कर्ण की गोद में सो गए, तो एक कीड़ा कर्ण की जांघ में घुस गया, परंतु कर्ण ने गुरु की नींद न टूटे, इसलिए दर्द सहन किया।
इस पर परशुराम को संदेह हुआ कि कोई ब्राह्मण इतना कष्ट कैसे सह सकता है? और उन्होंने कर्ण की सच्चाई जान ली।
गुस्से में आकर उन्होंने कर्ण को शाप दे दिया कि:
“जब तुम अपनी विद्या का सबसे अधिक उपयोग करना चाहोगे, तभी वह तुम्हें विस्मृत हो जाएगी।”
👉 यही शाप कर्ण के जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य बना और कुरुक्षेत्र के युद्ध में उनका पतन हुआ।
3. शक्ति का प्रतीक, परंतु निष्पक्ष
महाभारत में परशुराम को एक ऐसे तपस्वी के रूप में दर्शाया गया है जो सिर्फ न्याय और धर्म के पक्ष में खड़े रहते हैं—चाहे शिष्य हो या पुत्र समान योद्धा। वे कभी भी अधर्म का पक्ष नहीं लेते।
(महाभारत से जुड़ाव का सार)
- परशुराम ने भीष्म और कर्ण जैसे महायोद्धाओं को प्रशिक्षित किया, जो महाभारत की नींव हैं।
- वे केवल युद्ध के शिक्षक नहीं, बल्कि धर्म की कसौटी पर परखने वाले न्यायकर्ता भी हैं।
- उनकी भूमिका यह दर्शाती है कि सच्चा धर्मपथ हमेशा कठिन होता है, और गुरु की कृपा तभी टिकती है जब शिष्य पूर्ण सत्य पर चलता है।
ब्राह्मण समाज और परशुराम(Parshuram)जयंती
भारत के अनेक हिस्सों में ब्राह्मण समुदाय इस दिन को अपने आराध्य देव के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं।
अनेक जगहों पर रक्तदान शिविर, भंडारे, धार्मिक यात्राएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
परशुराम जयंती न केवल एक पर्व है, बल्कि यह धर्म, न्याय, शक्ति, और समर्पण की सीख देती है।
यह दिन हमें सिखाता है कि जब धर्म पर संकट हो, तब न्याय के लिए खड़े होना आवश्यक है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।
FAQs About Lord Parshuram and Parshuram Jayanti
1. भगवान परशुराम(Parshuram)कौन थे?
भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।
वे एक महान योद्धा, तपस्वी और शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे।
उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था और वे सप्त चिरंजीवियों में से एक माने जाते हैं।
2.(Parshuram)परशुराम जयंती कब मनाई जाती है?
परशुराम जयंती वैशाख शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई के महीने में पड़ती है।
यह दिन भगवान परशुराम के जन्म का दिन होता है।
3. परशुराम जयंती का महत्व क्या है?
परशुराम जयंती का महत्व भगवान परशुराम के अद्वितीय कार्यों और उनके द्वारा स्थापित धर्म के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन उनके शौर्य, तपस्या, और धर्म की रक्षा के लिए किए गए संघर्षों को याद करने का अवसर है।
4. परशुराम का जन्म किस युग में हुआ था?
भगवान परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में हुआ था।
वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे और उनका कार्यकाल मुख्य रूप से त्रेतायुग में रहा।
5. परशुराम जयंती कैसे मनाई जाती है?
परशुराम जयंती को विशेष पूजा, व्रत, और आराधना के साथ मनाया जाता है।
लोग इस दिन स्नान, व्रत रखते हैं, और भगवान परशुराम की पूजा करते हैं।
इसके अलावा, शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन भी इस दिन विशेष रूप से किया जाता है।
6. परशुराम और रामायण का क्या संबंध है?
परशुराम का संबंध रामायण से तब आता है जब उन्होंने श्रीराम को शिव का धनुष तोड़ने के बाद ललकारा था।
परशुराम ने श्रीराम के साथ एक संवाद किया, जो भगवान विष्णु के दो अवतारों का मिलन था।
वे दोनों धर्म और न्याय के रक्षक थे।
7. परशुराम (Parshuram)और महाभारत का क्या संबंध है?
महाभारत में भगवान परशुराम ने भीष्म पितामह और कर्ण को शस्त्र विद्या सिखाई थी।
परशुराम और कर्ण के बीच एक विवाद भी हुआ, जिसके कारण कर्ण को शाप मिला कि जब उसे सबसे अधिक आवश्यकता होगी, तब उसकी शस्त्र विद्या भूल जाएगी।
8. क्या भगवान परशुराम आज भी जीवित हैं?
जी हां, परशुराम को चिरंजीवी (अमर) माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, वे अभी भी महेंद्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं
और कलियुग के अंत में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को सहायता प्रदान करेंगे।
9. परशुराम का मुख्य शस्त्र क्या था?
भगवान परशुराम के पास परशु (एक प्रकार का भाला) था, जिसे वे युद्ध में प्रयोग करते थे।
यह शस्त्र उनके नाम से प्रसिद्ध हुआ और उनकी पहचान के रूप में जाना जाता है।
10. क्या परशुराम को कभी हार का सामना करना पड़ा था?
परशुराम को कभी हार का सामना नहीं हुआ, क्योंकि वे भगवान विष्णु के अवतार थे
और उनके पास असीम शक्ति थी।
हालांकि, उन्होंने कई बार अपने शिष्यों और अन्य योद्धाओं से युद्ध किए, जिनमें उनके शिष्य भी शामिल थे।
वे हमेशा धर्म की रक्षा करते थे।
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