संत कबीर दास: निर्गुण भक्ति के प्रवर्तक, विचारों के क्रांतिकारी

संत कबीर दास जी

संत कबीर दास जी कौन थे?

संत कबीर दास जी मध्यकालीन भारत के सबसे प्रभावशाली संतों में से एक थे। वे एक समाज सुधारक, कवि और धार्मिक गुरु थे, जिन्होंने तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों, आडंबरों और धार्मिक पाखंड के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनका नाम कबीर, जिसका अर्थ होता है “महान”, उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह दर्शाता है। उन्होंने अपने दोहों और कविताओं के माध्यम से भक्ति, ज्ञान और समाज के बीच संतुलन साधा।

कबीर दास जी का जन्म स्थान और बचपन

संतकबीर दास जी का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था, लेकिन वे किस जाति या कुल से थे, इस पर आज भी विवाद है। एक मान्यता के अनुसार, वे एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन एक मुस्लिम जुलाहा दंपति, नीमा और नीरू, ने उन्हें गंगा किनारे पाया और पाला।

उनका बचपन साधारण था और वे जुलाहा समुदाय में पले-बढ़े। प्रारंभ से ही वे सांसारिक आडंबरों से दूर और अध्यात्म की ओर झुके हुए थे। उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन उनकी वाणी इतनी ज्ञान से भरपूर थी कि बड़े-बड़े पंडित भी उनके विचारों के आगे नतमस्तक हो जाते थे।

कबीर दास जी की विचारधारा: सगुण या निर्गुण?

संत कबीर दास निर्गुण भक्ति मार्ग के सबसे बड़े प्रवर्तक माने जाते हैं। वे ईश्वर को बिना रूप, आकार और मूर्ति के मानते थे। उनका मानना था कि “ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और उसे मंदिर या मस्जिद में खोजने की आवश्यकता नहीं है।”

उनके कुछ प्रमुख विचार:

ईश्वर जात-पात, धर्म, और बाहरी क्रियाओं से परे है।

मनुष्य के भीतर ही परमात्मा का वास है।

पूजा-पाठ, हज या तीर्थयात्रा से अधिक ज़रूरी है अपने अंदर झांकना।

उनके दोहे इस बात की पुष्टि करते हैं:

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छोड़ि के, मन का मनका फेर।।

2025 में कबीर जयंती कब मनाई जाएगी?

कबीर जयंती 2025 में 11 जून, बुधवार को मनाई जाएगी।
यह ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है और इसे कबीर पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन उनके अनुयायी भजन-कीर्तन करते हैं और उनके दोहों का पाठ कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

राम और रहीम में कोई भेद नहीं

एक बार किसी ने कबीर से पूछा कि तुम हिंदू हो या मुसलमान? उन्होंने उत्तर दिया:

“ना मैं हिंदू ना मुसलमान,
ना मंदिर मेरा, ना मस्जिद।
मेरा तो बस एक राम है,
जो सबके अंदर वास करता है।”

गुरु और गोविंद

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।”

यह दोहा दर्शाता है कि गुरु की कृपा से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

कबीर अपने समय में जितने पूजे गए, उतने ही आलोचना के भी पात्र बने। उन्होंने खुलकर ब्राह्मणवाद, मूर्तिपूजा और धार्मिक रूढ़ियों की आलोचना की, जिससे उस समय के पंडित और मौलवी उनसे नाराज रहते थे।

उन्हें कई बार धर्मद्रोही, नास्तिक और पाखंडी तक कहा गया, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।

उत्तर प्रदेश से कबीर का गहरा संबंध

उत्तर प्रदेश में “संत कबीर नगर” नाम का एक जिला है, जो सीधे तौर पर संत कबीर दास जी से जुड़ा हुआ है। संत कबीर नगर जिला की स्थापना 5 सितम्बर 1997 को की गई थी। इसे बस्ती जिले से अलग करके बनाया गया और इसका नाम संत कबीर दास जी के सम्मान में रखा गया।इसका मुख्यालय है: खलीलाबाद

क्यों पड़ा “संत कबीर नगर” नाम?

इस ज़िले में स्थित है मगहर, जो संत कबीर दास जी की मृत्युस्थली है। मान्यता है कि उन्होंने काशी छोड़कर मगहर में देह त्याग की थी, ताकि यह भ्रम टूटे कि काशी में मरने से मोक्ष मिलता है और मगहर में नरक। मगहर में आज भी उनकी समाधि और मजार दोनों मौजूद हैं — यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक स्थल माना जाता है।

मगहर में क्या खास है?

स्थानविवरण
समाधि स्थलयहाँ कबीर दास जी की समाधि (हिंदू परंपरा) और मजार (मुस्लिम परंपरा) दोनों साथ-साथ बने हैं।
सालाना मेलाहर वर्ष ज्येष्ठ माह में संत कबीर जी की स्मृति में कबीर मेला लगता है। इसमें दूर-दूर से संत, श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
कबीर शोध संस्थानमगहर में कबीर साहित्य और दर्शन को समर्पित कई शोध संस्थान और संग्रहालय भी स्थापित किए गए हैं।

संत कबीर नगर की सांस्कृतिक पहचान:

यह जिला भक्ति आंदोलन की धरती माना जाता है। यहाँ आज भी कई कबीरपंथी मठ, आश्रम और भजन केंद्र सक्रिय हैं। कबीर की वाणी, दोहे, और विचारधारा यहाँ के जनजीवन में गहराई से बसे हुए हैं।

जन्म और जीवन:

  • कबीर दास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) में हुआ था और उनका अधिकांश जीवन वहीं बीता। यही उनकी साधना भूमि थी।
  • उन्होंने काशी में रहते हुए धार्मिक आडंबर, मूर्तिपूजा, और पाखंडों का खुला विरोध किया।

कबीर की मृत्यु और मगहर की प्रसिद्धि

कबीर दास जी का देहांत मगहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उस समय एक मान्यता थी कि जो व्यक्ति मगहर में मरेगा, उसे स्वर्ग नहीं मिलेगा। कबीर ने इस अंधविश्वास को तोड़ते हुए वहीं समाधि ली।

मगहर आज भी कबीर का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ एक अनोखी समाधि है – एक ओर हिंदू समाधि, दूसरी ओर मुस्लिम मजार। यह दर्शाता है कि कबीर किसी एक धर्म में नहीं, पूरे मानव समाज के संत थे।

उन्होंने अपने जीवन के अंत में काशी छोड़कर मगहर (संत कबीर नगर, यूपी) में निवास किया और वहीं उनका निधन हुआ।
यह स्थान आज एक तीर्थस्थल है जहाँ हर वर्ष कबीर मेला आयोजित होता है।

पंजाब से संत कबीर का संबंध

भक्ति आंदोलन और सूफी प्रभाव:

पंजाब में भक्ति आंदोलन और सूफी संतों का बहुत गहरा प्रभाव रहा है। कबीर दास जी की वाणी और शिक्षाएँ निर्गुण भक्ति परंपरा से जुड़ी थीं, जो सूफी संतों की तरह अलौकिक, निराकार और आत्मा-परमात्मा के एकत्व की बात करती थीं। इस कारण उनकी वाणी पंजाब में भी खूब लोकप्रिय हुई।

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी और अन्य गुरु साहिबान ने भी कबीर जी के दोहों को स्वीकार किया और गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया।
❝गुरु ग्रंथ साहिब में संत कबीर के 200 से अधिक पद दर्ज हैं।❞
इससे सिद्ध होता है कि कबीर जी का विचार पंजाब में अत्यधिक सम्मानित था।

निरंकारी और नामधारी पंथों में प्रभाव:

पंजाब के कई धार्मिक संप्रदायों जैसे निरंकारी, नामधारी, और राधास्वामी पंथों में कबीर के विचारों का गहरा असर देखा जा सकता है। उन्होंने कर्मकांड और बाहरी दिखावे का विरोध किया, जो कबीर के सिद्धांतों से मेल खाता है।

कबीर मठ और कबीरपंथ

कबीर के अनुयायियों द्वारा शुरू किए गए संप्रदाय को “कबीरपंथ” कहा जाता है। यह पंथ आज भी भारत, नेपाल और विदेशों में फैला हुआ है। काशी के लहरतारा और मगहर में कबीर मठ स्थापित हैं जहाँ उनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया जाता है। कबीर दास जी सिर्फ एक संत नहीं थे, वे समूचे उत्तर भारत के चेतना पुरुष थे।
पंजाब में उनका प्रभाव गुरु ग्रंथ साहिब और सूफी परंपरा के जरिए दिखता है, तो उत्तर प्रदेश उनकी जीवन यात्रा, जन्म और मोक्ष की भूमि रहा है। बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में कबीरपंथ आज भी जीवंत है।

इस तरह, संत कबीर उत्तर भारत के सभी प्रमुख धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धाराओं को जोड़ने वाले एक अद्वितीय संत हैं।

धर्म और आडंबर पर सीधी चोट करने वाला संत

कबीर दास जी एक ऐसे संत थे जिनकी वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 600 साल पहले थी। उन्होंने समाज को न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से जगाया बल्कि धार्मिक समानता और मानवता का पाठ पढ़ाया।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सत्य, प्रेम और ईश्वर की खोज के लिए जाति-धर्म से ऊपर उठना जरूरी है।

उनका संदेश आज के समय में और भी ज़्यादा जरूरी हो गया है, जब धर्म के नाम पर मतभेद और विवाद बढ़ते जा रहे हैं।

Frequently Asked Questions (FAQs) on Sant Kabir Das Ji

1. संत कबीर दास जी कौन थे?

संत कबीर दास जी 15वीं सदी के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे।

उन्होंने भक्ति आंदोलन के दौरान समाज में व्याप्त धार्मिक पाखंड, जातिवाद और बाह्याचार का विरोध किया।

वे निर्गुण भक्ति मार्ग के प्रवर्तक माने जाते हैं।

2. संत कबीर दास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।

हालांकि वे एक मुस्लिम जुलाहा परिवार में पले-बढ़े,

लेकिन उनके विचार सार्वभौमिक थे।

3. संत कबीर दास जी का निधन कहां हुआ था?

उनका निधन मगहर (वर्तमान संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।

उन्होंने स्वयं काशी छोड़कर मगहर में देह त्याग किया,

यह साबित करने के लिए कि मोक्ष स्थान से नहीं, कर्म और भक्ति से मिलता है।

4. क्या संत कबीर दास जी निर्गुण भक्ति में विश्वास रखते थे?

 हां, संत कबीर जी निर्गुण भक्ति के समर्थक थे।

वे ईश्वर को निराकार, निर्विशेष और सबमें समाया हुआ मानते थे।

उन्होंने मूर्तिपूजा और धार्मिक कर्मकांडों का विरोध किया।

5. संत कबीर के प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं?

कबीर जी की वाणी को बाद में उनके शिष्यों ने संकलित किया, जो “बीजक”, “साखी”, “सबद” और “रामैनी” नामक ग्रंथों में संग्रहित हैं।

इसके अतिरिक्त, गुरु ग्रंथ साहिब में भी उनके 200 से अधिक पद सम्मिलित हैं।

6. संत कबीर का पंजाब से क्या संबंध है?

पंजाब में संत कबीर की वाणी का गहरा प्रभाव है।

सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने भी कबीर जी के विचारों को अपनाया,

और उनकी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल की गईं।

उनके विचार सूफी और भक्ति आंदोलन दोनों को जोड़ते हैं।

7. संत कबीर नगर नामक जिले का क्या महत्व है?

उत्तर प्रदेश का संत कबीर नगर जिला संत कबीर जी के नाम पर 1997 में स्थापित किया गया था।

इसमें स्थित मगहर उनकी समाधि स्थली है,

जहां हर वर्ष कबीर मेला लगता है।

8. संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे कौन से हैं?

कुछ प्रसिद्ध दोहे:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।”

“साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।”

9. क्या संत कबीर हिंदू थे या मुसलमान?

कबीर दास जी जन्म से मुस्लिम जुलाहा परिवार में पले लेकिन उन्होंने न तो खुद को केवल हिंदू कहा और न ही मुसलमान। वे धर्म के पार जाकर एकात्मता और प्रेम के संदेशवाहक थे।

उनकी वाणी में दोनों धर्मों की अच्छाइयों का समावेश है।

10.2025 में संत कबीर जयंती कब मनाई जाएगी?

संत कबीर जयंती 2025 में 11 जून, बुधवार को मनाई जाएगी।

यह ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को पड़ती है, और इस दिन भक्तजन भजन, कीर्तन व कबीरपंथी आयोजन करते हैं।

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