प्रेमानंद जी महाराज: त्याग, तपस्या और भक्ति से परिपूर्ण एक दिव्य जीवन यात्रा

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज-जब बात भगवान के सच्चे भक्तों की होती है, तो वृंदावन की पावन भूमि से जुड़े एक ऐसे संत का नाम स्वतः मन में आता है, जिन्होंने बचपन में ही सांसारिक मोह माया त्याग कर श्रीराधा-कृष्ण के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया  ये हैं स्वामी प्रेमानंद जी महाराज। उनका जीवन केवल भक्ति की मिसाल नहीं, बल्कि समर्पण, साधना और सच्चे सनातन प्रेम का जीता-जागता स्वरूप है।

बाल्यकाल में ही भक्ति की लगन

उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद के एक छोटे से गांव अखरी में सन 1969 में जन्मे, बालक अनिरुद्ध कुमार पांडे (बचपन का नाम) बचपन से ही सामान्य बच्चों से अलग थे। जहाँ दूसरे बच्चे खेल-कूद में रमते, वहीं अनिरुद्ध का मन पूजा-पाठ, मंदिर, कथा और संतों की संगति में रमता था। उनके दादा जी भी संन्यासी थे, जिससे घर का वातावरण आध्यात्मिकता से भरा हुआ था।

माता-पिता की गोद में पले इस बालक ने बचपन में ही भागवत, रामायण और गीता जैसे धर्मग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, भगवान के प्रति लगाव और गहरा होता गया।

घर त्याग कर साधना पथ पर

महज 13 वर्ष की उम्र में, जब बच्चे जीवन के सपने देखना शुरू करते हैं, अनिरुद्ध ने एक अलग ही निर्णय लिया। उन्होंने सांसारिक जीवन को छोड़कर प्रभु की सेवा में लीन होने का मन बना लिया। अपनी माँ को प्रणाम करते हुए वे घर से निकल पड़े — बिना किसी योजना, बस राधा रानी की शरण में जाने की लगन लिए।

यह निर्णय किसी साधारण इंसान के बस की बात नहीं थी। उस उम्र में संसार के मायाजाल से निकलना, कठोर तप और साधना का मार्ग चुनना — ये सब दर्शाता है कि भगवान ने उन्हें इस विशेष कार्य के लिए चुना था।

प्रेमानंद जी महाराज की ब्रह्मचर्य और संन्यास की दीक्षा

घर छोड़ने के बाद उन्हें एक संत ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी और उनका नाम पड़ा आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी। कुछ वर्षों बाद उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और वे बन गए स्वामी आनंदाश्रम। इस दौरान उन्होंने अन्न, वस्त्र, नींद जैसी भौतिक आवश्यकताओं को त्यागकर गंगा किनारे कठोर तपस्या की।

हरिद्वार से लेकर काशी तक, गंगा किनारे वे नंगे पैर घूमते, दिन में तीन बार गंगा स्नान करते और कई-कई दिनों तक उपवास रखते थे। न गर्मी की चिंता, न सर्दी का डर — उनका शरीर तो मानो इस संसार में था ही नहीं, वे तो राधे राधे जपते-जपते श्रीहरि में लीन रहते।

वृंदावन की ओर खिंचाव

काशी में एक बार एक पेड़ के नीचे ध्यान करते समय, उन्हें राधा-कृष्ण की लीला की अनुभूति हुई। उनका मन कहने लगा कि जिस दिव्यता की खोज वे कर रहे हैं, वह तो वृंदावन में है। उसी समय से उनका मन रासलीला, श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और श्रीराधारानी की मधुरता में खो गया।

इस अनुभूति ने उन्हें वृंदावन की ओर खींचा, जहाँ उन्होंने रासलीला के आयोजनों में भाग लेना शुरू किया। एक महीने तक रासलीला देखने के बाद वे इतने भावविभोर हुए कि राधा-कृष्ण की लीलाओं के बिना जीवन अधूरा लगने लगा।

गुरु कृपा और राधा वल्लभ संप्रदाय में प्रवेश

वृंदावन में उनके आध्यात्मिक जीवन को दिशा देने वाले गुरु बने स्वामी गौरांगी शरण जी महाराज। उन्होंने प्रेमानंद जी को राधा वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित किया। गुरु की सेवा, संकीर्तन, लीला दर्शन, जप-तप — यही उनकी दिनचर्या बन गई।

गुरु सेवा करते-करते उन्होंने राधा नाम के प्रेम रस में अपनी आत्मा को डुबो दिया। वे कहते हैं कि गुरु के बिना भक्ति अधूरी है, और श्रीराधा के बिना कृष्ण भी अधूरे हैं।

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन संदेश

स्वामी जी कहते हैं —

“भक्ति वो नहीं जो केवल मुख से राधे-राधे कह देने से हो जाए। भक्ति तो तब होती है जब तुम्हारा मन, शरीर, आत्मा सब मिलकर उसी एक नाम में रम जाएँ।”

उनकी बातें केवल उपदेश नहीं, उनके जीवन का सार हैं। वे स्वयं जो कहते हैं, उसी को जीते भी हैं।

वर्तमान में सेवा और आश्रम जीवन

आज प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन में स्थित अपने आश्रम श्री हित राधा केली कुंज में रहते हैं, जो वराह घाट के पास स्थित है। यहाँ हर दिन हजारों भक्त दर्शन और सत्संग के लिए आते हैं।

सुबह 2:30 बजे उठकर वे भगवान का ध्यान करते हैं और फिर सुबह 9:15 से 10:15 तक सत्संग में प्रेम रस की वर्षा करते हैं। उनके सत्संग में कथा, भजन, तत्त्व ज्ञान और लीलाओं का ऐसा संयोग होता है कि हर कोई भावविभोर हो जाता है।

 प्रेमानंद जी महाराज की कुछ विशेष बातें जो उन्हें महान बनाती हैं

कभी किसी से दान नहीं लिया — जो मिला प्रभु की कृपा समझकर स्वीकार किया।

हर व्यक्ति को समान दृष्टि से देखा — जाति, धर्म या लिंग के आधार पर कोई भेद नहीं।

राधा नाम में अटूट विश्वास — वे कहते हैं कि ‘राधा’ नाम ही साधक को कृष्ण से मिला देता है।

तपस्या और संयम का जीवन — शरीर से जितना संभव हो, उन्होंने सभी इंद्रिय भोगों का त्याग किया।

राधा प्रेम के महामार्ग पर एक राही

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा सुख भौतिक साधनों में नहीं, ईश्वर प्रेम में है। एक ऐसा बालक जिसने स्कूल के बजाय संन्यास चुना, एक ऐसा युवक जिसने दुनिया के सारे सुख त्यागकर राधा-कृष्ण की भक्ति को अपनाया — क्या यह किसी चमत्कार से कम है?

उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि यदि मन में श्रद्धा और संकल्प हो, तो कोई भी आत्मा ईश्वर के चरणों तक पहुँच सकती है।

यदि आप वृंदावन जाकर उनके दर्शन करना चाहते हैं
स्थान – श्री राधा केली कुंज, वराह घाट मार्ग, वृंदावन

Frequently Asked Questions (FAQs) about Shree premanand ji maharaj

 1.प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम क्या है?

प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है।

वे बचपन में ही घर त्यागकर सन्यास मार्ग पर चल पड़े थे।

2.प्रेमानंद जी महाराज कहाँ के रहने वाले हैं?

 वे उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद के अखरी गांव से हैं, जो सरसौल ब्लॉक में स्थित है।

3.प्रेमानंद जी महाराज किस संप्रदाय से संबंधित हैं?

वे वृंदावन के राधा वल्लभ संप्रदाय से संबंधित हैं और श्रीहित हरिवंश जी की परंपरा का पालन करते हैं।

4.क्या प्रेमानंद जी महाराज से आम व्यक्ति मिल सकता है?

 हाँ, वे वृंदावन स्थित श्री राधा केली कुंज आश्रम में रहते हैं।

सुबह 2:30 से 3:00 बजे तक दर्शन और सुबह 9:15 से 10:15 तक सत्संग का समय होता है।

5..क्या प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग यूट्यूब पर उपलब्ध हैं?

हाँ, उनके कई सत्संग, प्रवचन और भजन YouTube पर ‘Vrindavan Ras Mahima’ और अन्य आध्यात्मिक चैनलों पर उपलब्ध हैं।

6..क्या प्रेमानंद जी महाराज किसी गुरुकुल या संस्थान से जुड़े हैं?

वे किसी औपचारिक गुरुकुल का संचालन नहीं करते,

लेकिन श्री राधा केली कुंज आश्रम में भक्ति, सेवा और साधना से संबंधित नियमित कार्यक्रम होते हैं।

7.क्या महिलाएं भी प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग में भाग ले सकती हैं?

जी हाँ, प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग में स्त्री और पुरुष, दोनों समान रूप से स्वागत योग्य हैं

उनके लिए कोई भेदभाव नहीं है।

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