वट सावित्री व्रत एक ऐसा पर्व है जो भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के अटूट बंधन और नारी शक्ति की दृढ़ता का प्रतीक है। यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसमें छिपी पौराणिक कथा और साधना की शक्ति हर महिला को अपनी आस्था और श्रद्धा को समर्पित करने का अवसर देती है। वट सावित्री व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाता है ताकि उनके पति की आयु लंबी हो, परिवार में सुख-शांति बनी रहे और समृद्धि हमेशा बनी रहे।
वट सावित्री व्रत 2025 में कब है?
2025 में वट सावित्री व्रत सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा। यह दिन खास इसलिए भी है क्योंकि इस बार व्रत सोमवती अमावस्या के शुभ योग में पड़ेगा, जो अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। वैदिक पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12:12 बजे प्रारंभ होगी और अगले दिन 27 मई को सुबह 8:32 बजे तक रहेगी। इसी दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करेंगी।
व्रत का महत्व और इसके पीछे की कथा
वट सावित्री व्रत का इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा है। इसकी मूल कथा देवी सावित्री और उनके पति सत्यवान की है। सावित्री एक महान तपस्विनी, बुद्धिमान और पतिव्रता स्त्री थीं। उन्होंने जब भविष्यवाणी के माध्यम से जाना कि उनके पति सत्यवान अल्पायु हैं, तब भी उन्होंने उनसे विवाह किया। एक दिन सत्यवान की मृत्यु वन में वट वृक्ष के नीचे हो गई। तभी यमराज उनकी आत्मा को लेकर चलने लगे। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपने तप, ज्ञान और सच्ची निष्ठा से उन्हें प्रभावित कर दिया। यमराज ने सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा, लेकिन सावित्री ने इतनी चतुराई से वरदान मांगे कि अंत में यमराज को सत्यवान को पुनः जीवन देना पड़ा। उसी दिन से यह व्रत स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए श्रद्धापूर्वक किया जाता है।
वट वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट यानी बरगद का वृक्ष त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वासस्थान माना गया है। इसे अजर-अमर का प्रतीक भी कहा गया है। सावित्री और सत्यवान की कथा इसी वृक्ष के नीचे घटित हुई थी, इसलिए इस दिन इस पेड़ की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से दीर्घायु, स्वास्थ्य, सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
वट सावित्री व्रत कैसे करें – पहली बार व्रत रखने वालों के लिए पूरी विधि
अगर आप पहली बार वट सावित्री व्रत रख रही हैं तो घबराइए नहीं। यह व्रत सरलता और श्रद्धा से किया जाए तो ईश्वर की कृपा अवश्य मिलती है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें और शुद्ध पीले या लाल वस्त्र पहनें। फिर व्रत का संकल्प लें और वट वृक्ष की पूजा के लिए सामग्री तैयार करें।
वट वृक्ष के नीचे जाकर उसकी जड़ों में जल अर्पित करें। इसके बाद रोली, चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, पुष्प, फल, मिठाई और धूप-दीप से पूजा करें। फिर कच्चे सूत (या कलावे) को लेकर वट वृक्ष की सात, ग्यारह या 108 बार परिक्रमा करें और उसे पेड़ के तने पर लपेटें। इस दौरान अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें। इसके बाद देवी सावित्री-सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष व्रत कथा सुनें या पढ़ें। अंत में व्रत की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटें।
वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री क्या-क्या होती है
पूजन के लिए आपको चाहिए – कच्चा सूत, कलावा, रक्षा सूत्र, रोली, चंदन, कुमकुम, सिंदूर, फूल, फल, बताशे, मिठाई, पान, सुपारी, अक्षत, धूप, दीप, इत्र, सवा मीटर कपड़ा, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, पूजा थाली, जल कलश और कथा पुस्तक।
क्या मासिक धर्म में व्रत रखा जा सकता है?
धार्मिक परंपराएं इस विषय पर विविध मत रखती हैं। आधुनिक समय में कई महिलाएं मासिक धर्म के दौरान व्रत रखती हैं लेकिन पूजा सामग्री को नहीं छूतीं। आप ऐसी स्थिति में व्रत का संकल्प ले सकती हैं, कथा सुन सकती हैं और किसी अन्य महिला से पूजा करवाकर भाव से व्रत का पालन कर सकती हैं।
तुलसी के पौधे से भी कर सकते हैं पूजा
अगर आपके पास वट वृक्ष उपलब्ध नहीं है तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। तुलसी का पौधा भी वट वृक्ष का प्रतीक माना जा सकता है। आप तुलसी के सामने बैठकर सावित्री व्रत की पूजा और कथा कर सकती हैं।
तुलसी को भी सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
व्रत में भोजन और फलाहार कैसे करें
इस दिन कई महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं यानी पूरे दिन बिना पानी पिए व्रत का पालन करती हैं। कुछ महिलाएं फलाहार करती हैं जिसमें मौसमी फल जैसे आम, लीची, खरबूज, तरबूज, नारियल पानी, चना, पूड़ी, पूए, मुरब्बा आदि खाया जा सकता है।
फलाहार करके भी व्रत की पूर्णता होती है, खासकर यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जल रहना संभव न हो।
दान-पुण्य और कथा का महत्व
पूजा के बाद कम से कम 7 या 11 सुहागिन महिलाओं को सुहाग सामग्री और वस्त्र दान करें। यह दान इस व्रत का अत्यंत पुण्यदायक अंग माना जाता है। व्रत कथा का श्रवण या पाठ करना अनिवार्य माना गया है।
इससे व्रत की पूर्णता होती है और व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
व्रत से जुड़े कुछ विशेष धार्मिक तथ्य
महाभारत में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है, जहां कहा गया है कि भीम ने भी इसे किया था, इसलिए कुछ स्थानों पर इसे भीमसेनी व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र के लिए बल्कि सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और सौभाग्य के लिए भी किया जाता है।
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति, श्रद्धा और सच्चे प्रेम की शक्ति का जीवंत उदाहरण है। देवी सावित्री ने जिस निष्ठा से अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस लाया, वह आज भी महिलाओं को प्रेरणा देती है। यदि श्रद्धा से इस व्रत को किया जाए तो न केवल आपके पति की उम्र लंबी होती है बल्कि आपके परिवार में भी सुख-शांति बनी रहती है।
यह पर्व भारतीय संस्कृति की उस जड़ से जुड़ा है जहां नारी शक्ति को केवल पूजा ही नहीं गया बल्कि उसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के आशीर्वाद के योग्य माना गया। पहली बार करने वाली महिलाएं इस व्रत को पूरी आस्था और श्रद्धा से करें – आप निश्चित रूप से उसका फल पाएंगी।
FAQs: Vat Savitri Vrat 2025
Q1. वट सावित्री व्रत 2025 में कब है?
वट सावित्री व्रत 2025 में 26 मई, सोमवार को मनाया जाएगा।
यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को पड़ता है, जो इस बार सोमवती अमावस्या भी है।
Q2. वट सावित्री व्रत किस लिए रखा जाता है?
यह व्रत विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए रखती हैं।
सावित्री द्वारा अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाने की कथा इससे जुड़ी है।
Q3. वट सावित्री व्रत में कौन-कौन सी पूजा सामग्री चाहिए?
व्रत में उपयोग होने वाली प्रमुख सामग्रियाँ हैं: वट वृक्ष की जड़, धागा (सूत्र), सिंदूर, कुमकुम, हल्दी, फल, मिठाई, पानी का कलश, पूजा की थाली, फूल और दीपक।
Q4. वट सावित्री व्रत कैसे किया जाता है?
व्रत रखने वाली महिलाएं प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं।
फिर वट वृक्ष की पूजा करके उसकी परिक्रमा करती हैं और कथा सुनती हैं।
दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को व्रत का समापन करती हैं।
Q5. क्या वट सावित्री व्रत कुंवारी लड़कियां रख सकती हैं?
हां, कुछ क्षेत्रों में कुंवारी लड़कियाँ भी यह व्रत भविष्य में अच्छे जीवनसाथी की कामना के लिए रखती हैं,
परंतु यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा रखा जाता है।
Q6. क्या वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत एक ही हैं?
नहीं, वट सावित्री व्रत अमावस्या को रखा जाता है (उत्तर भारत),
जबकि वट पूर्णिमा व्रत पूर्णिमा को रखा जाता है (महाराष्ट्र और दक्षिण भारत)।
दोनों का उद्देश्य और कथा समान होती है।
Q7. व्रत के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा कितनी बार की जाती है?
व्रत करने वाली महिलाएं वट वृक्ष की 7, 11 या 21 बार परिक्रमा करती हैं
और हर परिक्रमा के साथ सूत (धागा) लपेटती हैं।
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